भारत के पड़ौसी राष्ट्र मालदीव में 23 सितंबर को राष्ट्रपति के चुनाव होने वाले हैं। इस समय अब्दुल्ला यामीन वहां राष्ट्रपति हैं। वे अपने पिछले पांच साल के कार्यकाल में लगभग तानाशाह बन गए हैं। उनके विरुद्ध चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार इबू मोहम्मद सोलेह ने श्रीलंका जाकर कहा है कि ये चुनाव निष्पक्ष और प्रामाणिक नहीं होंगे। इनमें बड़ी धांधली की तैयारी काफी पहले से चल रही है। इस पर भाजपा के सांसद सुब्रहमण्यम स्वामी ने कहा है कि यदि चुनाव में धांधली हो तो भारत को मालदीव में अपनी फौज भेज देनी चाहिए। मोदी सरकार में स्वामी का कोई महत्व नहीं है और उनके कहने पर विदेश मंत्रालय ने उसे उनकी ‘निजी राय’ भी बता दिया है लेकिन मालदीव की यामीन सरकार का पारा गर्म हो गया है। उसके विदेश सचिव अहमद सरीर ने हमारे राजदूत अखिलेश मिश्रा को बुलाकर अपनी अप्रसन्नता प्रकट की और भारत सरकार को भी एक कड़ा पत्र लिखा है। सरीर ने दक्षेस-राष्ट्रों के राजदूतों को भी बुलाकर शिकायत की है।
जाहिर है कि यामीन के विरुद्ध भारत कोई फौजी कार्रवाई नहीं कर सकता। यदि करेगा तो उसकी अंतरराष्ट्रीय भर्त्सना होगी, क्योंकि उसे किसी राष्ट्र के आंतरिक मामलों में बाहरी हस्तक्षेप माना जाएगा। पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद का जो कि भारतप्रेमी हैं, जब 2012 में तख्ता-पलट हुआ, तब भी भारत ने हस्तक्षेप नहीं किया तो अब वह क्यों करेगा ? फीजी में अपने भारतवंशी महेंद्र चौधरी की सरकार का जब तख्ता-पलट हुआ, तब भी अटलजी ने सैन्य हस्तक्षेप नहीं किया तो भारत यह दूसरों का सिरदर्द क्यों मोल लेगा?
हां, यदि चुनाव के बाद मालदीव में अराजकता फैल जाए और जनता मांग करे तो भारत अपनी फौज भेजने पर विचार कर सकता है। यामीन ने न सिर्फ पूर्व राष्ट्रपतियों नशीद और गय्यूम, जो उनके बड़े भाई भी हैं, गिरफ्तार कर लिया था, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के जजों, बड़े-बड़े सरकारी अफसरों और नेताओं को भी अंदर कर रखा है। उन्होंने वहां सक्रिय 30 हजार भारतीयों का जीवन भी दूभर कर रखा है। चीन से उन्होंने पूरी सांठ-गांठ कर रखी है। नरेंद्र मोदी सभी पड़ौसी देशों में जा चुके हैं, मालदीव के सिवा ! मालदीव को सबक सिखाने की जरुरत जरुर है लेकिन सितंबर में वहां फौज भिजवाना उचित नहीं होगा।
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