विदेशी राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों को हमारे प्रधानमंत्री गुजरात क्यों ले जाते हैं? वे हर किसी विदेशी नेता को नहीं ले जाते। पिछले साढ़े तीन साल में दर्जनों विदेशी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भारत आए हैं लेकिन अहमदाबाद जाने का सौभाग्य अभी तक सिर्फ तीन विदेशी नेताओं को मिला है। चीन के राष्ट्रपति शी चिन फिंग, जापान के प्रधानमंत्री शिजो एबे और अब इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू। आप यह मान कर चलिए कि यदि अमेरिका के महान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत आ गए तो उन्हें भी गुजरात जाना ही पड़ेगा, क्योंकि हमारे प्रधानमंत्री और ट्रंप की जुगलबंदी काफी प्रसिद्ध हो चुकी है। मुझे याद नहीं पड़ता कि जवाहरलाल नेहरु से मनमोहनसिंह तक कोई ऐसा प्रधानमंत्री भी हुआ है, जो विदेशी नेताओं को अपने गृह-प्रांत में ले गया हो। क्या ख्रुश्चौफ और बुल्गानिन को नेहरु कभी इलाहाबाद या लखनऊ ले गए? क्या इंदिरा गांधी फिदेल कास्त्रों को वाराणसी या हरिद्वार ले गईं? क्या नरसिंहराव नेपाल नरेश को हैदराबाद या पामुलपर्ती ले गए ? क्या अटलबिहारी वाजपेयी अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई को कभी भोपाल या ग्वालियर ले गए?
इन मेहमानों को वहां ले जाने का अर्थ है, करोड़ों रु. की बर्बादी? उससे भी कीमती चीज़ है, समय। संपूर्ण सरकार और खबरतंत्र के समय की बर्बादी। इन विदेशी नेता को गुजरात ले जाकर हमारे सर्वज्ञजी क्या दिखाना चाहते हैं? उन्होंने वहां कौन सा चमत्कारी काम कर दिखाया है? अगर दिखाया होता तो गुजरात के चुनाव में यह दुर्दशा क्यों होती ? गुजरात में यदि मुख्यमंत्री के तौर पर मोदी ने कुछ अदभुत काम किए हैं तो हम भारतीयों की इच्छा क्यों नहीं होती कि हम वहां जाएं, उन्हें देखें और अपनी बोली और कलम से करोड़ों लोगों को उन्हें बताएं ? आज गुजरात भारत के सभी प्रांतों के लिए आदर्श क्यों नहीं बन जाता? विदेशी मेहमानों को अहमदाबाद का गांधी आश्रम दिखाने लायक है, क्योंकि गांधी तो विश्व-पुरुष हैं लेकिन राष्ट्रीय सेवक संघ के कार्यकर्त्ता क्या मोदी की इस चतुराई पर हंसते नहीं होंगे ? मोदी का चर्खा चलाना देख कर किसे हंसी नहीं आती होगी ? इसमें शक नहीं कि इस तरह की नौटंकियों से प्रचार खूब मिलता है लेकिन अपनी अवधि के इस आखिरी दौर में मोदी यह क्यों नहीं समझते कि वे भारत के प्रधानमंत्री हैं, प्रचारमंत्री नहीं।
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