राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक याने मुखिया श्री मोहन भागवत का नाम राष्ट्रपति पद के लिए उछला है। शिवसेना के एक प्रवक्ता ने उन्हें राष्ट्रपति बनाने का प्रस्ताव किया है। शिव सेना के इस प्रस्ताव की नरेंद्र मोदी उपेक्षा नहीं कर सकते, क्योंकि उप्र में प्रचंड विजय पाने के बावजूद भाजपा को राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के लिए अभी कम से कम 20 हजार वोट कम पड़ रहे हैं। जबकि शिवसेना के 21 सांसद और 63 विधायकों के कुल मिलाकर 25,893 वोट बनते हैं। यदि शिव सेना बगावत पर उतर जाए तो भाजपा के उम्मीदवार का राष्ट्रपति बनना खटाई में पड़ सकता है। यों भी शिव सेना ने राष्ट्रपति के पिछले चुनावों में कांग्रेस के प्रणब मुखर्जी और प्रतिभा पाटील का समर्थन किया था। अब शिव सेना ने मोहनजी का नाम पता नहीं क्यों उछाला है? उसके प्रवक्ता की मानें तो मोहनजी के राष्ट्रपति बनने पर भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाना संभव हो जाएगा।
यह शुद्ध मजाक नहीं तो क्या है? यह नरेंद्र मोदी को पटकनी मारने का पैंतरा भी हो सकता है। यों राष्ट्रपति का पद तो सिर्फ रबड़ की मुहर होता है लेकिन मोदी-जैसे स्वयंसेवक के लिए एक सर संघचालक किसी भी गुरु या पिता से कम नहीं होगा। जो मोदी आडवाणीजी और जोशीजी को नहीं झेल सकता, वह क्या मोहनजी को सह लेगा? जहां तक मोहनजी का सवाल है, वे राष्ट्रपति क्या, किसी भी पद को स्वीकार क्यों करेंगे? कतई नहीं। स्वयंसेवकों के लिए उनका पद, पद नहीं परमपद है। उन्हें राष्ट्रपति बनाने की बात कहना क्या उनका सम्मान करना है? मोहन भागवत का जैसा तपस्वी, त्यागमय और समर्पित जीवन रहा है, उसके आगे ये सारे राजनीतिक पद बहुत छोटे पड़ते हैं। गुरु गोलवलकरजी से लेकर मोहनजी तक जितने भी सर संघचालक रहे हैं, उनसे मेरा घनिष्ट व्यक्तिगत परिचय रहा है। मैं यह बात पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि मोहनजी जैसा विचारशील, उदार और विनम्र होना नेताओं के बस की बात नहीं है। वे अपने आप को नेताओं की श्रेणी में उतारना क्यों पसंद करेंगे? जहां तक भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने की बात है, शिवसेना के ‘हिंदू राष्ट्र’ और मोहन भागवत के हिंदू राष्ट्र में जमीन-आसमान का अंतर है।
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