पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री मियां नवाज शरीफ को वहां के सर्वोच्च न्यायालय ने जीवन भर के लिए चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया है। यह निर्णय पांचों जजों ने सर्वसम्मति से लिया है। इसे मैं सर्वसम्मति कहूं या सर्वदुर्मति कहूं ? मियां नवाज पर यह प्रतिबंध इसलिए लगाया गया है कि ‘पनामा पेपर्स’ मामले में उन्होंने उन्हें मिलने वाले वेतन को बताया नहीं, छिपा लिया। हो सकता है कि कानून की नजर में यह दंडनीय अपराध हो लेकिन क्या यह इतना गंभीर अपराध है कि किसी बड़े नेता को पहले प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़े, फिर पार्टी की अध्यक्षता और फिर जीवन भर के लिए राजनीतिक संन्यास लेना पड़े ?
अदालतों के जज समझ रहे हैं कि उन्होंने बड़ा तीर मार लिया है लेकिन क्या वे इतना भी नहीं समझते कि वे नवाज़ शरीफ को पाकिस्तान का महानायक बना रहे हैं ? वे भारतीय उप महाद्वीप के आम आदमियों की मानसिकता को समझने की कोशिश बिल्कुल नहीं कर रहे हैं। जब चौधरी चरणसिंह ने इंदिराजी को गिरफ्तार किया था, उसी दिन उन्होंने उनके दुबारा प्रधानमंत्री बनने की नींव रख दी थी। यदि मियां नवाज को गिरफ्तार कर लिया गया तो उनकी पार्टी दो-तिहाई बहुमत से जीतेगी और उसके बाद संविधान में संशोधन होगा और अदालत का फैसला और उसकी इज्जत कूड़ेदान के हवाले कर दी जाएगी। अदालत ने पाकिस्तानी संविधान की धारा 62 (1) फ का मनमाना उपयोग किया है। उसमें किसी भी नागरिक को जीवन भर चुनाव से वंचित रखने की बात नहीं कही गई है। सर्वोच्च न्यायालय ने यह अतिवादी फैसला क्यों किया। इसकी गहराई में मैं फिलहाल नहीं जाना चाहता हूं लेकिन पाकिस्तानी समाज और लोकतंत्र के लिए इस तरह के फैसले काफी नुकसानदेह सिद्ध होते रहे हैं।
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