लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव को तो गिरना ही था लेकिन राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी ने जो नौटंकियां वहां कर डालीं, उन्होंने करोड़ों दर्शकों का जबर्दस्त मनोरंजन किया। इस नौटंकी से कई संदेश निकले। पहला तो यही कि अब मोदी और राहुल का संबंध गुरु और चेले का हो गया है। राहुल के इस भाषण ने यह सिद्ध कर दिया कि गुरु और चेले का बौद्धिक स्तर अब लगभग समान होता जा रहा है। अविश्वास-प्रस्ताव तो गिर गया लेकिन राहुल की छवि ऊंची हो गई। राहुल ने मोदी को मात कर दिया। राहुल ने अपने भाषण के बाद मोदी को बिल्कुल वैसी ही झप्पी मारी, जैसी मोदी विदेशी राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्री को मारते हैं।
मोदी का हतप्रभ होना स्वाभाविक था। गुरु गुड़ रह गया, चेला चीनी बन गया। चेला धाराप्रवाह बोल रहा था, अपने गुरु की तरह ! हाथ-पांव भी मार रहा था और आरोप पर आरोप भी लगाए जा रहा था लेकिन गुरुजी शुरु में खोए-खोए-से लग रहे थे और बार-बार कागज देख-देखकर बोल रहे थे। हालांकि उन्होंने कई शब्दों जैसे नामदार और कामदार तथा चौकीदार और भागीदार की तुकबंदी करके अपनी नैय्या पार लगा दी। उनका डेढ़ घंटे का भाषण कुछेक मिनिटों काफी असरदार रहा। लेकिन कुल मिलाकर उनके चेले के मुकाबले काफी उबाऊ था। चेले को आजकल जो भी पट्टी पढ़ा रहा है, उसको बधाई। यदि चेले के सीखने की रफ्तार यही रही तो 2019 में गुरुजी की शामत आ जाएगी। 2024 के अविश्वास का प्रस्ताव उन्हें 2019 में ही तंग करके रख देगा। रेफल-सौदा पर रक्षा मंत्री और मोदी के जवाब में कुछ भी स्पष्टता नहीं थी। फ्रांसीसी सरकार का स्पष्टीकरण भी निरर्थक है। 500 करोड़ के जहाज के हमने 1600 करोड़ रु. क्यों दे दिए, यह बताने में कौनसा गोपनीय रक्षा-रहस्य भंग हो रहा है ? यदि कांग्रेस के पास प्रभावशाली नेतृत्व होता तो रेफल-सौदा मोदी का महा-बोफोर्स बन सकता है।
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