कुलभूषण जाधव के मामले में पाकिस्तान घाटे में रहा। यदि वह थोड़ी शिष्टता और मर्यादा का पालन करता तो उसकी अन्तरराष्ट्रीय छवि भी सुधरती, उसका शायद न्यायिक पक्ष भी मजबूत हो जाता और भारत-पाक संबंधों में भी कोई नई किरण फूटती। जाधव की मां और पत्नी को इस्लामाबाद में जाधव से मिलने की इजाजत देकर पाकिस्तान ने एक ऐसी खुश खबर पैदा कर दी थी कि लोगों को विश्वास ही नहीं हो रहा था। भारत में अचानक ऐसा लगा कि अब भारत-पाक रिश्ते सुधरने ही वाले हैं लेकिन 25 दिसंबर की यह मुलाकात एक नए तनाव का कारण बन गई है। 21 महिने की जेल काटने और मौत की सजा सुनाए जाने के बाद जाधव अपनी मां और पत्नी से खुलकर मिलता तो पाकिस्तान का क्या बिगड़ जाता ?
एक-एक पल की बात का और सारे दृश्य की रेकार्डिंग पाकिस्तानी अधिकारियों के पास होती। उसकी मां और पत्नी उन सब ‘प्रमाणों’ को, जिनके आधार जाधव को जासूस करार दिया गया है, किसी भी प्रकार से खत्म नहीं कर सकती थीं। वे सब पाकिस्तान की फौज के पास सुरक्षित हैं। फिर उसे इन दो महिलाओं से ऐसा कौनसा डर था ? उनके कपड़े क्यों बदलवाए गए, जूते क्यों उतरवाए गए, बीच में शीशे की दीवार क्यों खड़ी की गई, उनके मंगलसूत्र, बिंदी और चूड़ियां क्यों उतरवाई गई, इंटरकॉम पर ही बात क्यों करवाई गई, मराठी बोलने से मना क्यों किया गया ? पाकिस्तान में हजारों मराठी भाषी कराची में रहते हैं। मां-बेटे की मराठी बातचीत का उर्दू अनुवाद वहां आसानी से हो सकता था। इतना ही नहीं, उनके साथ गए भारतीय कूटनीतिज्ञ को एक अलग केबिन में बिठाकर पाकिस्तानी सरकार ने क्या संदेश दिया ? क्या यह नहीं कि वह जरुरत से ज्यादा डरी हुई है? यदि पाकिस्तान के पास जाधव के विरुद्ध ठोस प्रमाण हैं तो उसे अपना पक्ष रखने की पूरी कानूनी और कूटनीतिक सुविधा क्यों नहीं दी जानी चाहिए ? पाकिस्तान के इस विचित्र व्यवहार के कारण अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में उसका पक्ष अब और कमजोर हो जाएगा। पिछले दो-तीन दिन से मैं अपने ये विचार कई पाकिस्तानी और भारतीय टीवी चैनलों पर प्रकट करता रहा हूं, इसी आशा के साथ कि पाकिस्तानी नीति-निर्माता घबराएंगे नहीं और सही राह पर चलेंगे।
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