दैनिक भास्कर, 19 जुलाई 2019: हेग की अंतरराष्ट्रीय अदालत में भारत की विजय और आतंक सरगना हाफिज सईद की गिरफ्तारी, इन दोनों घटनाओं से हमारी सरकार और हम लोग गदगद हैं लेकिन इन दोनों मामलों की बहुत-सी पेचीदगियों को भी समझना जरुरी है। पाकिस्तानी सरकार और फौज ने कुलभूषण जाधव को भारतीय आतंकवादी और जासूस बताकर उसे मौत की सजा दे दी थी लेकिन अंतरराष्ट्रीय अदालत के 16 जजों में से 15 के बहुमत से पाकिस्तान को निर्देश दिया है कि वह जाधव पर फिर से मुकदमा चलाए और उसे अपने पक्ष में भारतीय वकीलों को खड़े करने की पूरी सुविधा दे। ऐसी सुविधाओं से जाधव को वंचित करके पाकिस्तान ने वियना अभिसमय का उल्लंघन किया है।
अदालत के इस फैसले ने जाधव को आरोप मुक्त नहीं किया है लेकिन उसने पाकिस्तान की नाक काट ली है। इस फैसले ने यह सिद्ध कर दिया है कि पाकिस्तान की अदालतें फौज के इशारे पर काम करती हैं। फौज के इशारे पर ही नवाज़ शरीफ और आसिफ जरदारी को जेल की हवा खिलाई गई है। जुल्फिकार अली भुट्टो को भी फांसी पर लटका दिया गया था। इस अंतरराष्ट्रीय अदालत में जिस एक मात्र जज ने जाधव के विरुद्ध राय दी है, वह कौन है ? वह पाकिस्तानी जज है।
यह ठीक है कि भारत की अपील को रद्द करते हुए अंतराष्ट्रीय अदालत ने जाधव को रिहा नहीं किया है लेकिन उसके फैसले ने पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय हैसियत को लहू-लुहान कर दिया है। जाधव की सजा को सही ठहरानेवाले पाकिस्तानी जज का साथ चीन और अमेरिका के जजों ने भी नहीं दिया। पाकिस्तान यहां बिल्कुल अकेला पड़ गया लेकिन पाकिस्तान इसी बात पर फूला नहीं समा रहा है कि अंतरराष्ट्रीय अदालत ने जाधव को दोषमुक्त घोषित नहीं किया और उस पर फिर से मुकदमा चलाने का हक उसे मिल गया है। अब यह मुकदमा फिर से फौजी अदालत में चलेगा या सामान्य अदालत में इसका कुछ पता नहीं है। इस संबंध में हेग की अंतरराष्ट्रीय अदालत ने कोई स्पष्ट निर्देश नहीं दिया है। अब सवाल यह है कि पाकिस्तान क्या करेगा ? संभावना यही है कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय अदालत की बात मानेगा। वह जाधव को फांसी नहीं देगा और अब उस पर बाकायदा मुकदला चलाएगा। लेकिन यदि वह जाधव को फांसी देना तय करे तो हेग की अदालत कुछ नहीं कर सकती। इस अदालत के पास अपना फैसला लागू करवाने की कोई ताकत नहीं है। अमेरिका ने निकारागुआ और ईरान के मामलों में इस अदालत के फैसले को कूड़े की टोकरी के हवाले कर दिया लेकिन उसका बाल भी बांका नहीं हुआ, क्योंकि ज्यों ही ऐसे मामले सुरक्षा परिषद में जाते हैं, अमेरिका अपना वीटो इस्तेमाल करता है।
पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय अदालत की अवहेलना नहीं कर सकता लेकिन क्या जाधव पर मुकदमा चलाकर वह उसे फिर से मौत की सजा दे सकता है ? जरुर दे सकता है और वह यह सिद्ध करने की असफल कोशिश कर सकता है कि भारत भी आंतकवादी राष्ट्र है। वह सारी दुनिया से पूछेगा कि आप सिर्फ पाकिस्तान को ही आतंकवादी क्यों कहते हैं ? हमारे आतंकवादी तो गैर-राज्यीय (नाॅन-स्टेट एक्टर्स) हैं जबकि जाधव तो भारत सरकार और फौज का अफसर रहा है। यदि पाकिस्तान का सोच इसी तरह का है तो वह अपना नुकसान खुद ही करेगा।
मैं तो यह समझता हूं कि पाकिस्तान का भला इसी में है कि वह कुलभूषण जाधव को रिहा कर दे। वैसे भी उसके खिलाफ जासूसी और आतंकवाद के कोई ठोस प्रमाण पाकिस्तान के पास नहीं हैं और एक क्षण के लिए मान लें कि वैसे कुछ प्रमाण पाकिस्तानी फौज ने अपने आप घड़ लिये हैं तो भी वह जाधव को रिहा कर दे तो इमरान खान सरकार की सारी दुनिया में उसी तरह तारीफ होगी, जिस तरह भारतीय पायलट अभिनंदन जैन को रिहा करने पर हुई थी। पाकिस्तान आज जैसी आर्थिक और राजनीतिक मुसीबतों में फंसा हुआ है, जाधव की रिहाई उसके लिए जबर्दस्त सदभावना पैदा करेगी। वह इमरान के उस कथन को सही साबित करेगी कि भारत एक कदम आगे बढ़ाएगा तो पाकिस्तान दो कदम बढ़ाएगा।
जहां तक हाफिज सईद की गिरफ्तारी का सवाल है, सारी दुनिया इसे नौटंकी मान रही है। जिस आदमी के सिर पर 70 करोड़ रु. का इनाम अमेरिका ने घोषित कर रखा है, जो बरसों से लाहौर की सड़कों पर खुले आम प्रदर्शन करता है, भाषण देता है, जिसकी वजह से पाकिस्तान को सारी दुनिया ‘गुंडा राष्ट्र’ (रोग़ स्टेट) कहती है, जो पहले भी कई बार गिरफ्तार हो चुका है और छूट चुका है, उसे अब सिर्फ इसलिए गिरफ्तार किया गया है कि उसके खिलाफ आतंकवाद फैलाने के लिए पैसे जमा करने के प्रमाण मिले हैं। ये प्रमाण कितने ठोस हैं और यह पैसा मदरसे व यतीमखाने चलाने के लिए इकट्ठा किया गया है या आतंकवाद के लिए, यह तो बाद में अदालत ही तय करेगी लेकिन सभी जानते हैं कि इस नौटंकी के पीछे क्या है ?
इसके पीछे इमरान खान की अमेरिका-यात्रा है। इमरान अगले हफ्ते डोनाल्ड ट्रंप से मिलेंगे तो उनके प्रति भक्तिभाव दिखाना उन्होंने अभी से शुरु कर दिया है। ट्रंप भी गदगद हैं। उन्हें गर्व है कि अमेरिका का दबाव काम कर रहा है। उन्हें खुश करने के लिए पाकिस्तान क्या-क्या कर रहा है। अमेरिका इस वक्त अफगानिस्तान से पिंड छुड़ाना चाहता है । वह तालिबान को पटा रहा है तो तालिबान का मेजबान पाकिस्तान भी पटने को तैयार है। उसके सिर पर अंतरराष्ट्रीय फाइनेंशियल टास्क फोर्स की तलवार लटकी हुई है। इमरान-जैसे स्वाभिमानी पठान को कुर्सी पर बैठते ही भिक्षा-पात्र लेकर देश-देश में भटकना पड़ रहा है। पाकिस्तान की फौज भी दयालु बन गई है। हाफिज सईद की गिरफ्तारी की इजाजत देकर वह अपने बनाए प्रधानमंत्री की मदद कर रही है।
लेकिन इमरान खान सचमुच पाकिस्तान के महान और एतिहासिक प्रधानमंत्री बनना चाहें तो एक तरफ तो वे कुलभूषण जाधव को रिहा करें और दूसरी तरफ हाफिज सईद, लखवी और हक्कानी-जैसे को दिखावटी कैद करने की बजाय आतंकवाद के पूर्ण परित्याग का संकल्प करें। पाकिस्तान को आतंक से पूर्ण मुक्ति दिलाएं। अपने फौजी मित्रों को समझाएं कि आतंकवाद के जरिए वे हजार साल तक भी कोशिश करते रहेंगे तो न वे कश्मीर को हथिया सकेंगे और न ही काबुल को कब्जा सकेंगे। पाकिस्तान के आतंकवादियों ने जितना नुकसान भारत का किया है, उससे ज्यादा वे पाकिस्तान का कर रहे हैं। पाकिस्तान की फौज को भारत के विरुद्ध आतंकवादियों का सहारा लेना पड़ रहा है, इससे क्या सिद्ध होता है ? क्या यह नहीं कि फौज असहाय है, निरुपाय है, निकम्मी है ? पाकिस्तान की फौज, सरकार और जनता- सभी को राहत मिलेगी, अगर इमरान खान यह नई पहल करेंगे।
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