पाकिस्तान की राजनीति आजकल डावांडोल है। उसके सबसे ज्यादा लोकप्रिय रहे और सबसे ज्यादा बार प्रधानमंत्री बने, ऐसे नेता मियां नवाज शरीफ काफी मुश्किल के दौर से गुजर रहे हैं। इतनी मुसीबत तो राजीव गांधी ने भी नहीं झेली। बोफोर्स में राजीव बदनाम जरुर हुए लेकिन उनके विरुद्ध आज तक कुछ भी सिद्ध नहीं हो पाया लेकिन इस मामले में पाकिस्तान भारत से कहीं आगे निकल गया।
पाकिस्तान की न्यायपालिका ने उसके शक्तिशाली प्रधानमंत्री को सांसत में डाल दिया है। उसके सर्वोच्च न्यायालय ने ‘पनामा पेपर्स’ के मामले में इतनी उधेड़-बुन कर डाली, जितनी किसी कुर्सी पर बैठे प्रधानमंत्री के खिलाफ करने की हिम्मत किसी अदालत की नहीं होती। जैसे जनरल मुशर्रफ के खिलाफ पाक न्यायपालिका भिड़ गई थी, अब उससे भी ज्यादा नवाज शरीफ और उनकी संतान के विरुद्ध उसने माहौल गरमा दिया है।
नवाज शरीफ परिवार के पास बेहिसाबी संपत्ति कहां से आई, इसका जवाब कोई नहीं दे पा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने नवाज को कठघरे में खड़ा कर दिया और उनके खिलाफ जांच बिठा दी। इस जांच रपट में उन्हें दोषी करार दिया गया। नवाज ने इस रपट को रद्दी की टोकरी के लायक कह दिया है और अब अदालत में उस पर बहस चल रही है। जांच कमेटी ने नवाज़ के खिलाफ 15 अन्य पुराने मामलों में जांच की मांग की है।
तहरीके-इंसाफ के नेता इमरान खान ने नवाज के खिलाफ अपनी तोपों के मुंह खोल दिए हैं। माना जाता है कि यह फौज के इशारे पर ही हो रहा है। जांच कमेटी के सदस्यों में फौज और गुप्तचर विभाग के दो अफसर भी थे। पाकिस्तान में फौज इतनी ताकतवर है कि वह चाहे तो नवाज़ का तख्ता-पलट कर सकती है लेकिन उस हालत में डोनाल्ड ट्रंप का अमेरिका पाकिस्तान का टेंटुआ कस सकता है।
हो सकता है कि अदालत कोई बीच का रास्ता निकाल दे और मियां नवाज अगले साल तक टिके रहें। कोई आश्चर्य नहीं कि पाकिस्तान की जनता उन्हें फिर चुन ले, क्योंकि अपने दक्षिण एशियाई राष्ट्रों में जनता को पता है कि अंधाधुंध पैसा जमा किए बिना राजनीति करना असंभव है लेकिन मियां नवाज का अगले साल के चुनाव तक लंगड़ाते हुए प्रधानमंत्री बने रहना, भारत के लिए मंहगा पड़ेगा, क्योंकि पाकिस्तानी सरकार का सारा ध्यान अपनी अंदरुनी गुत्थी सुलझाने पर केंद्रित हो जाएगा।
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