आज पंडित प्रकाशवीरजी शास्त्री का 95 वां जन्मदिवस है। दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में वह बहुत ही उत्तम ढंग से मनाया गया। 4 घंटे चले इस कार्यक्रम में कुछ संन्यासियों, कुछ विद्वानों और कुछ नेताओं ने उनके संस्मरण सुनाए। वे आर्यसमाज के ऐसे महान वक्ता थे, जिनके भाषण सुनने के लिए भारत के शहरों में हजारों की भीड़ अपने आप जुट जाती थी। वे कई बार संसद के लिए चुने गए एक निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर ! मुझे यह जानकर थोड़ा आश्चर्य हुआ और आनंद भी हुआ कि सारे उपस्थितों में मैं ही ऐसा था, जो उनका सबसे पुराना जानकार था। लगभग 65-70 साल पुराना ! मेरे पिताजी उन्हें हर साल आर्यसमाज के वार्षिकोत्सक में व्याख्यान के लिए इंदौर बुलाया करते थे। 1957 में याने अब से 61 साल पहले इंदौर में उनके भाषण से उत्प्रेरित होकर मैंने पंजाब के हिंदी सत्याग्रह में भाग लिया और पटियाला में जेल काटी।
मैं जब 1965 में पीएच.डी.करने दिल्ली आया तो वे ही मेरे स्थानीय अभिभावक बने थे। मेरा और उनका जन्म दिन 30 दिसंबर को ही पड़ता है। मैंने अपना यह जन्म दिन कभी नहीं मनाया, क्योंकि मैं मानता हूं कि हर नई सुबह जब मैं सोकर उठता हूं तो वह मेरा नया जन्मदिन होता है। जब तक शास्त्रीजी रहे, वे हर 30 दिसंबर की सुबह मुझे फोन करते और फिर दिन में उनके साथ डा. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी, शंकरदयालसिंहजी और मैं भोजन करते।
वे ऐसे महान वक्ता थे कि प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु भी संसद में अपना समय उन्हें दे देते थे। अटलबिहारी वाजपेयी भी आर्यसमाजी थे लेकिन वे कहा करते थे कि काश, वे प्रकाशवीरजी जैसा बोल पाते। 1972 में जब मेरे निवेदन पर अटलजी ने प्रकाशवीरजी को जनसंघ में लिया तो वे बोले अब जनसंघ को करोड़ों नए मतदाता मिल जाएंगे। भारत की कौनसी ऐसी पार्टी है, जो प्रकाशवीरजी को अपने साथ नहीं लेना चाहती थी।
यदि प्रकाशवीरजी के भाषणों की रेकार्डिंग और उनके चित्र किसी के पास हों तो कृपया मुझे भिजवाए। उनके संसदीय भाषणों का संग्रह तैयार हो रहा है। उनके भाषणों में हमारे सांसदों को सीखने लायक बहुत-से गुर मिलेंगे और विपक्ष में रहते हुए भी उच्च मर्यादा का पालन कैसे किया जाए, इसका पता चलेगा। वे महर्षि दयानंद के सच्चे शिष्य थे। उन्होंने अपने व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन में अनुकरणीय आचरण के प्रतिमान कायम किए। उनका निधन 23 नवंबर 1977 को एक रेल-दुर्घटना में हुआ था।
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