संसद का यह सत्र एक दंगल बनकर रह जाता, यदि कल कांग्रेस और भाजपा के नेताओं को सद्बुद्धि नहीं आती। राज्यसभा में कांग्रेस का वर्चस्व है, इसलिए तो पिछले 10-12 दिन वहां काम ठप्प ही रहा। लोकसभा में भी कुछ न कुछ हंगामा तो रोज ही होता रहा। इस हंगामे का कारण सरकार की कोई जन-विरोधी कार्रवाई नहीं थी। बल्कि कांग्रेस की यह मांग थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी माफी मांगे, क्योंकि गुजरात के चुनाव के दौरान उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री, पूर्व उप-राष्ट्रपति और पूर्व सेनापति पर बेहद गंदे आरोप लगाए।
उन्होंने उन पर यह आरोप भी लगाया कि ये लोग पाकिस्तान के इशारे पर मोदी को गुजरात में हराने की साजिश कर रहे थे। मोदी से माफी मंगवाने की बजाय भाजपा ने कांग्रेस पर तेज हमला किया और कहा कि उसके सदस्यों ने भारत के प्रधानमंत्री के लिए जैसे गंदे शब्दों का प्रयोग किया उसके लिए वे माफी मांगें। जिन दिनों यह वाग्युद्ध चल रहा था, मैंने लिखा था कि भारत की राजनीति अपने निम्नतम स्तर को छू रही है।
दोनों माफी मंगवाने पर अड़े रहे लेकिन बातचीत के द्वारा दोनों पक्षों ने अब हल निकाल लिया। दोनों पक्षों ने बड़ी परिपक्वता और शिष्टता का परिचय दिया। दोनों की दादागीरी नरम पड़ी। दोनों पक्षों के नेताओं ने स्पष्ट शब्दों में अफसोस जाहिर किया कि उनके बयानों से एक-दूसरे को दुख पहुंचा। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के नेताओं के प्रति सम्मान प्रकट किया। इतनी स्वस्थ संसदीय पंरपरा एक तरफ कायम हुई लेकिन दूसरी तरफ कांग्रेस अध्यक्ष महापंडित राहुलजी ने ट्वीट कर दिया कि ‘हमारे प्रधानमंत्री कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं। जो कहते हैं, वह करते नहीं।’ इसी तरह एक भाजपा मंत्री अ.कु. हेगड़े ने कह दिया कि भाजपा सरकार संविधान से ‘सेक्युलर’ शब्द हटाएगी।
अब यह एक नया विवाद उठ खड़ा हुआ है। इस तरह के विवाद बिल्कुल निरर्थक हैं। देश के राजनीतिक दलों को इस समय अपना ध्यान देश में बुनियादी परिवर्तन करने पर लगाना चाहिए न कि आपसी दंगलों पर। अगले डेढ़ साल भी पिछले साढ़े तीन साल की तरह खाली निकल गए तो जनता पक्ष और विपक्ष, दोनों को दंडित करेगी।
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