दैनिक भास्कर, 27 जून 2019:देश के प्लास्टिक उद्योग की ओर से हाल ही में बयान आया कि वह देश में प्लास्टिक उद्योग को दोगुना करना चाहते हैं ताकि इस क्षेत्र में रोजगार बढ़ाया जा सके। जिस उद्योग को उत्तरोत्तर घटाने की जरूरत है, वहां ऐसा इरादा चिंता पैदा करता है। प्लास्टिक मनुष्य जाति के लिए कितना खतरनाक हो सकता है, इसकी कल्पना अब से 50-60 साल पहले किसी को नहीं थी। उस जमाने में प्लास्टिक के खिलौने बनते थे, बड़े-बड़े ढोल और टंकियां बनने लगी थी और तार, टेलिफोन व हैंडल जैसे उपकरण भी प्लास्टिक के होने लगे थे, लेकिन पिछले 5-6 दशकों में प्लास्टिक का साम्राज्य हर क्षेत्र में फैल गया है। अनुमान है कि 1950 से अब तक दुनिया में 8 अरब 30 करोड़ टन से भी अधिक प्लास्टिक का उत्पादन हो चुका है। हर साल सारी दुनिया में 500 अरब प्लास्टिक की थैलियां इस्तेमाल की जाती हैं, जबकि रोज़मर्रा की प्लास्टिक की चीज़ों के नष्ट होने में 800 से 1000 साल तक का समय लगता है।
प्लास्टिक के गिलासों, कटोरियों, चम्मचों, बोतलों, डिब्बों, प्लेटों आदि के माध्यम से सिर्फ एक साल में किसी भी मनुष्य के शरीर में प्लास्टिक के 52000 कण प्रवेश कर सकते हैं। माइक्रो प्लास्टिक के ये सूक्ष्म कण सिर्फ खाने-पीने के जरिए ही शरीर में घर नहीं करते हैं, बल्कि ये प्लास्टिक के कपड़ों, टयूब-टायरों, कॉन्टेक्ट लेंस, मोबाइल फोन, पेन-पेंसिलों आदि के जरिए भी मानव शरीर में अपनी जगह बना लेते हैं। लोगों को यह पता ही नहीं चलता है कि उन्हें कैंसर क्यों हो जाता है और उनके फेफड़े क्यों खराब हो जाते हैं। बच्चों के खिलौने में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक में जब कई तरह के रंग-रोगन मिला दिए जाते हैं तो वे उन मासूम बच्चों को भी गंभीर बीमारियों का शिकार बना देते हैं। यूरोप और जापान में इस तरह के खिलौनों पर पूर्ण प्रतिबंध है।
इससे भी ज्यादा खतरा प्लास्टिक के कचरे से पैदा होता है, जो इतना ज्यादा फैल गया है कि पूरे पृथ्वी-मंडल के चारों तरफ कम से कम चार बार लपेटा जा सकता है। सारी दुनिया में प्लास्टिक की जितनी भी चीजें बनती हैं, उनमें से ज्यादातर ऐसी हैं, जो सिर्फ एक बार ही इस्तेमाल होती है। आपके पास कांच, पीतल या स्टील का गिलास हो तो उसे आप उसे कई वर्षों तक इस्तेमाल करते हैं, लेकिन प्लास्टिक के गिलास में पानी पीकर उसे फेंक देते हैं। भारत में इस तरह का प्लास्टिक का कचरा रोज 2 हजार टन से भी ज्यादा इकट्ठा हो जाता है।
प्लास्टिक के इस कचरे से हमारे समुद्र, नदियां, तालाब और कुएं पटे जा रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे समुद्र में प्लास्टिक के 5000 अरब टुकड़े तैर रहे हैं। ये टुकड़े समुद्री जीवों के पेट में जाकर उनकी मौत का कारण बनते हैं। जंगलों में फैला प्लास्टिक कचरा पशुओं और पक्षियों की जान तो ले ही लेता है, वह पेड़-पौधों और वनस्पतियों को भी हानि पहुंचाता है। प्लास्टिक जलाने से जो जहरीली हवा बनती है, उससे भी पानी विषाक्त हो जाता है, हमें सांस लेने में कठिनाई होती है।
जो प्लास्टिक अब से 60-70 साल पहले मनुष्य जाति के लिए वरदान की तरह पृथ्वी पर उतरा था, वह अब अभिशाप बन गया है। प्लास्टिक के इस्तेमाल के कारण सैकड़ों वर्षों से चली आ रही राजमर्रा के इस्तेमाल की चीजें नदारद हो गई हैं। अब मिट्टी के कुल्हड़ों में पानी कौन पीता है, पत्तलों पर खाना कौन खाता है, जूट की चटाइयां कौन बिछाता है, लकड़ी की कलमों से कौन लिखता है, अचार और मुरब्बों के लिए चीनी, कांच और मिट्टी के मर्तबान कौन रखता है, बाजार जाते वक्त किसके हाथ में कपड़े की थैली होती है? अब हमारे लाखों दर्जियों, कुम्हारों, सुतारों के पेट पर लात मारकर हमने प्लास्टिक उद्योग का महाराक्षस खड़ा कर दिया है, जो आज सवा दो लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। उसमें 45 लाख लोग लगे हुए हैं। प्लास्टिक उद्योग पर अगर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया तो इतने लोगों के रोजगार का क्या होगा? 45 लाख लोग एकाएक बेरोजगार हो जाएं, ऐसा काम कोई सरकार क्यों करना चाहेगी? लेकिन ऐसे फैसले तो तुरंत करने ही चाहिए, जिससे प्लास्टिक उद्योग से पैदा होनेवाली भयंकर बीमारियां, जहरीले प्रदूषण और पर्यावरण के विनाश को रोका जा सके। सरकार चाहे तो प्लास्टिक से बनी उस हर चीज़ पर प्रतिबंध लगा सकती है, जो लोगों के खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने, सांस लेने आदि में इस्तेमाल होती है। कई क्षेत्र ऐसे हैं, जिनमें प्लास्टिक का यथोचित इस्तेमाल हो सकता है। यदि प्रतिबंध के कारण कुछ रोजगार छिनेंगे तो हमारे लाखों कुम्हारों, कसेरों, दर्जियों, सुतारों, लुहारों को नया रोजगार मिलेगा। मुनाफाखोरी भी घटेगी।
दुनिया के लगभग 40 देशों ने प्लास्टिक के खतरे को भांप लिया है। उन्होंने प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। केन्या में तो प्लास्टिक की थैलियां यदि कोई बेचे या इस्तेमाल करे तो उसे चार साल की कैद और 40 हजार डाॅलर जुर्माना भरना पड़ सकता है। फ्रांस, चीन, इटली और रवांडा जैसे देशों में प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध है। भारत इस मामले में काफी ढीला है। हमारे कुछ राज्यों ने प्रतिबंध लगाने की घोषणा तो कर दी है, लेकिन उसे वे सख्ती से लागू नहीं कर रहे हैं। भारत में आज हर व्यक्ति साल भर में लगभग 200 प्लास्टिक की थैलियों का इस्तेमाल करके उन्हें कूड़े में फेंक देता है। देश में हर साल लगभग 60 लाख टन प्लास्टिक कूड़ा पैदा होता है। बड़े शहरों में इस कूड़े की भरमार है। हमारे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार दिल्ली में 690 टन, चेन्नई में 429 टन, कोलकाता में 426 टन और मुंबई में 408 टन प्लास्टिक कचरा रोज पैदा होता है।
यदि प्लास्टिक के इस खतरे से देश को बचाना है तो सिर्फ प्रतिबंध की घोषणाओं से कुछ नहीं होगा। इनके साथ-साथ प्लास्टिक की थैलियां, प्लेटें, ग्लास, चम्मच, कटोरियां और बर्तन बनाने वालों पर लाखों रुपए का जुर्माना हो और हल्की-फुल्की सजा भी हो, यह भी जरूरी है। इस प्रतिबंध के कारण जो कारखाने बंद हों और जो मजदूर बेरोजगार हों, उनकी समुचित देखभाल की व्यवस्था भी सरकार करे। इन सबसे भी ज्यादा जरूरी है कि हमारे देश के राजनीतिक दल अपने करोड़ों कार्यकर्ताओं से प्लास्टिक के बर्तनों के बहिष्कार का संकल्प करवाएं। इस बहिष्कार के पक्ष में जबर्दस्त जन-आंदोलन चलाएं। देश के साधु-संत, मौलवी-पादरी, समाजसेवी-सुधारक लोग भी प्लास्टिक के खतरों से लोगों को जागरूक करने का अभियान चलाएं। इस देश को किसी विचारधारा, किसी व्यक्ति, किसी नेता या पार्टी से मुक्त कराने की बजाय प्लास्टिक से मुक्त कराना ज्यादा जरूरी है।
Aaditya Kumar says
Well said sir, we need to provide replacement options to public so that public use them to avoid plastic materials.
jaidev shukla says
behatareeb aalekh. A lot of information.. Indeed we must stop using plastic bags , glasses and plates etc