देश में अमीर और गरीब की खाई बढ़ती जाए और फिर भी सत्तारुढ़ नेता दावा करें कि 2019 के चुनाव में वे प्रचंड बहुमत से जीतेंगे तो जरा आश्चर्य होता है। अमीरों की संख्या हजारों में रहती है, जबकि गरीबों की संख्या करोड़ों में है। लोकतंत्र की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि अमीरों और गरीबों, दोनों को सिर्फ एक ही वोट का अधिकार है। इस समय देश में जो पांच करोड़ आयकर दाता हैं, उनमें से सिर्फ 272 ऐसे हैं, जिनकी आमदनी 500 करोड़ रु. सालाना से ज्यादा है। देश में सिर्फ 5 प्रतिशत लोगों की आय शेष 95 प्रतिशत लोगों से ज्यादा है। याने यह खाई है, अमीरी और गरीबी के बीच की खाई ! यह खाई जितनी जलन पैदा करती है, उतनी जलन कोई खाई पैदा नहीं करती ! हमारे मोदी-राज में अच्छे दिन कितने तेजी से आ रहे हैं ?
मोदी राज में यह खाई बढ़ कर 15 प्रतिशत और गहरी हो गई है। गैर-बराबरी नापने का जो पैमाना इटालवी अर्थशास्त्री कोरेडो जिनी ने 1912 में बनाया था, उसके अनुसार भारत की गैर-बराबरी 2013 में 48 अंकों तक थी, वह 2016 में बढ़कर 63 अंकों तक पहुंच गई है। ये तब तक के आंकड़े है। पिछले दो साल में वह और ज्यादा बढ़ी होगी, क्योंकि नोटबंदी और जीएसटी ने मध्यम और निचले वर्ग को ज्यादा चोट पहुंचाई है। 2013 में देश के ऊपर के 1 प्रतिशत लोगों ने कुल 15 प्रतिशत आमदनी की थी। यही 2016 में बढ़कर 45 प्रतिशत हो गई। ये आयकर विभाग के आंकड़े हैं। आयकर विभाग आमदनियों को 21 श्रेणियों में बांटता है। आयकर भरने वाले लगभग ढाई करोड़ लोगों की आमदनी 3.5 लाख रु. साल से भी कम है। दूसरे शब्दों में देश के लगभग सवा अरब लोगों की आय इतनी कम है कि वे टैक्स भरने लायक भी नहीं हैं।उनमें कई करचोर भी होंगे लेकिन देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्हें दो वक्त की रोटी भी ठीक से नसीब नहीं है। उनके वस्त्र, निवास, चिकित्सा, शिक्षा और मनोरंजन की न्यूनतम व्यवस्था तो आज भी सपना ही है। इन पिछले चार सालों में घोषणाएं तो कई हुईं लेकिन उनका असर तो अभी तक नदारद है। पता नहीं, यह सरकार जादू की कौनसी छड़ी घुमाएगी, जिससे 5-10 करोड़ नए मतदाता उनकी तरफ आकर्षित होंगे।
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