प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीन-दिवसीय पश्चिम एशियाई यात्रा भारत के लिए काफी लाभदायक रही। वास्तव में यह चार-देशीय यात्रा हो गई, क्योंकि फलस्तीन की राजधानी रमल्लाह जाने के लिए जोर्डन की राजधानी अम्मान से उन्हें हेलिक़ॉप्टर लेना पड़ा। अम्मान में बादशाह अब्दुल्लाह से उन्होंने आतंकवाद आदि पर बात की। जब वे फलस्तीन पहुंचे तो उसके राष्ट्रपति महमूद अब्बास की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने मोदी को फलस्तीन का सर्वोच्च सम्मान ग्रांड कॉलर प्रदान किया और मोदी ने 5 करोड़ डॉलर की सहायता की घोषणा की। मोदी ने फलस्तीनियों के हितों की रक्षा का वादा तो किया लेकिन पूर्वी येरुशलम को फलस्तीन की राजधानी बनाने और उस क्षेत्र में दो स्वतंत्र, सार्वभौम राष्ट्रों की बात को वे टाल गए। इन मुद्दों को उठाकर इजराइल के घावों पर वे नमक क्यों छिड़कते, हालांकि भारत इन मुद्दों पर हमेशा दो-टूक राय रखता रहा है।
मेरी राय है कि मोदी ने चुप रहकर ठीक किया, क्योंकि मोदी उन रायों को दोहराते तो इजराइल नाराज़ हो जाता और फलस्तीन का कोई फायदा नहीं होता। इसका अर्थ यह नहीं कि भारत ने अपनी राय बदल दी है बल्कि कुछ मामलों में सार्वजनिक तौर पर चुप रहकर परस्पर बोलना बेहतर कूटनीति होती है। जैसा कि इस यात्रा के पहले मैंने कहा था कि मोदी चाहें तो इजराइल और फलस्तीन के बीच भारत मध्यस्थता कर सकता है। राष्ट्रपति अब्बास ने इस बात को बयान देकर दोहराया है। देखना है कि हमारा नेतृत्व इस मामले में सिर्फ प्रचार और नौटंकी से संतुष्ट हो जाता है या कुछ ठोस पहल भी करता है ? जहां तक संयुक्त अरब अमारात का सवाल है, वहां यह मोदी की दूसरी यात्रा है। उसके साथ रेल, ऊर्जा, सड़क, वित्त तथा अन्य क्षेत्रों में कई समझौते हुए हैं। अबूधाबी की तेल कंपनी में भारत ने 10 प्रतिशत का हिस्सा ले लिया है। मोदी ने एक मंदिर का भी उद्घाटन किया। संयुक्त वक्तव्य में आतंकवाद के विरुद्ध भी खुलकर मोर्चा लिया गया। सबसे महत्वपूर्ण यात्रा ओमान की रही। ओमान से भारत के संबंध पहले से ही घनिष्ट हैं लेकिन इस बार अदन की खाड़ी के मुहाने पर बसे दुक्म बंदरगाह की सुविधाओं के लिए जो समझौता हुआ है, वह पाकिस्तानी बंदरगाह ग्वादर पर होने वाली चीनी दादागीरी का तगड़ा जवाब होगा। ओमान से यदि तेल और गैस की पाइपलाइन जल-मार्ग से सीधी भारत आ सके तो दक्षिण एशिया की शक्ल ही बदल सकती है। अब ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी की होने वाली भारत-यात्रा मोदी की इन यात्राओं के संदर्भ में काफी प्रासंगिक रहेगी।
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