पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी 7 जून को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि होंगे। इस खबर ने कांग्रेस के खेमे में खलबली मचा दी है। कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी संघ पर हमला करने का कोई अवसर नहीं चूकते और कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता अब नागपुर के संघ कार्यालय को सुशोभित करेंगे। कांग्रेस के कई वरिष्ठ और कनिष्ठ नेताओं ने प्रणब दा की नागपुर-यात्रा का कड़ा विरोध किया है और कुछ ने आशा प्रकट की है कि नागपुर जाकर भी उनका रंग तिरंगा ही रहेगा, भगवा नहीं हो जाएगा।
देखें, प्रणब दा वहां जाकर क्या बोलते हैं ? हो सकता है कि उनकी यह नागपुर-यात्रा देश में बड़ी बदमजगी पैदा कर दे। हो सकता है कि वे संघ के बारे में वे ही बातें दोहरा दें, जो कांग्रेस-नेता के रुप में कहते रहे हैं। वैसे राष्ट्रपति के तौर पर उन्होंने ऐसी बात कभी नहीं कही, जो संघ की तलवारों को म्यान से बाहर खिंचवा दे लेकिन कांग्रेस के पदाधिकारी रहते हुए उन्होंने संघ को घोर सांप्रदायिक, संकीर्ण और आतंकवाद से जुड़ा हुआ भी बताया है।
यहां प्रणब मुखर्जी के बारे में मेरे पाठक एक बात अच्छी तरह से जान लें। वे कभी नेता नहीं रहे हैं। कांग्रेस में उनकी भूमिका हमेशा स्थायी नौकरशाह की रही है। पहले इंदिरा गांधी, फिर सोनिया गांधी और मनमोहनसिंह की वे नौकरी बजाते रहे हैं। वे नरसिंहरावजी के भी जी-हुजूर रहे हैं। इंदिराजी की हत्या के बाद उनकी प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा उन्हें कांग्रेस के बाहर ले गई लेकिन जल्दी ही उन्हें आटे-दाल के भाव मालूम पड़ गए। यह उनकी वफादारी और नौकरशाही वृत्ति का ही सुफल था कि वे राष्ट्रपति बन गए।
उनकी विदाई के अवसर पर जरा आप मोदी का भाषण याद कीजिए। प्रणब दा ने राष्ट्रपति की मर्यादा भी एक उत्तम नौकरशाह की तरह निभाई। इसलिए संघ-समर्थकों को उनसे डरने की कोई जरुरत नहीं है। उनमें इतनी हिम्मत ही नहीं है कि वे संघ को तो क्या, किसी को भी खरी-खरी सुना सकें। जहां तक विचारधारा का सवाल है, कांग्रेस और प्रणब मुखर्जी की विचारधारा बस एक ही है- कुर्सी कैसे पाऊं ? सत्ता ही ब्रह्म है, विचारधारा मिथ्या है।
विचारधारा वाला संघ प्रणब मुखर्जी को इतना सम्मान दे रहा है, इसका मैं स्वागत करता हूं और प्रणब दा के साहस की दाद देता हूं कि वे नागपुर जा रहे हैं। यह सच्चे लोकतंत्र का प्रतीक है। संवाद का यह सेतु कांग्रेस और भाजपा में ही नहीं, हमारे सारे राजनीतिक दलों के बीच कायम हो तो हमारी राजनीति अधिक स्वस्थ, अधिक सहिष्णु और अधिक गरिमापूर्ण बन जाएगी। इस उदारतापूर्ण और दूरंदेश कदम के लिए सर संघचालक मोहन भागवत को मेरी बधाई।
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