बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद अब भारत के राष्ट्रपति होंगे। वे भाजपा के उम्मीदवार घोषित हो गए हैं तो उनकी विजय निश्चित ही होगी। कोविंद का नाम जैसे ही टीवी चैनलों ने उछाला, बहुत से पत्रकार-बंधुओं के फोन आने लगे और वे पूछने लगे कि यह कोविंद कौन हैं ? संयोग की बात है कि रामनाथजी कोविंद और मेरा परिचय लगभग 50-52 साल पुराना है। यह उन्होंने ही मुझे बताया था। उस समय वे किसी भी दल में नहीं थे। वे कानपुर से दिल्ली आ गए थे और यहां कानून की पढ़ाई करते वक्त कई बड़े नेताओं के साथ वे काम भी करते थे। जब अपने हिंदी शोधग्रंथ संबंधी विवाद के संबंध में मैं बड़े नेताओं से मिलने जाता था तो उनके घर पर इनसे भेंट होती थी। उनकी यह विनम्रता और सहजता है कि पिछले कुछ वर्षों में वे मुझसे मिलने मेरे गुड़गांव के नए निवास पर भी आते रहते थे। मैं पिछले दिनों पटना गया तो उन्होंने वहां राजभवन में भी गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया। मुख्यमंत्री नीतीशकुमार और कोविंदजी के आपसी संबंध भी मधुर रहे हैं। इससे यही अंदाज लगाया जा सकता है कि मोदी-कोविंद संबंध कितने अच्छे रहेंगे। पटना में कोविंदजी से मिलने के पहले मैं नीतीशजी से मिला था। उनके मुंह से राज्यपाल की तारीफ सुनकर मुझे अच्छा लगा था।
कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने पर कई लोगों को अचरज हो सकता है, क्योंकि उनका नाम इतना प्रसिद्ध नहीं है और उसका कहीं जिक्र भी नहीं था। लेकिन वे देहात में जन्मे हैं और अनुसूचित जाति के हैं। वे वकालत करते रहे हैं। वे दो बार भाजपा के राज्यसभा में सदस्य रह चुके हैं और अनेक समाजसेवी संगठनों के अध्यक्ष रह चुके हैं। उनके राष्ट्रपति बनने का जो भी विरोध करेगा, उस पर दलित-विरोधी ठप्पा लगेगा। इसके अलावा उन पर कोई भी सांप्रदायिक संकीर्णता का आरोप नहीं लगा सकता। उनका जीवन निष्कलंक और अविवादास्पद रहा है। वे विचारशील व्यक्ति हैं। वे विनम्र और मधुरभाषी जरुर हैं लेकिन उन्हें कोई रबर का ठप्पा मानकर नहीं चल सकता। कोविंद जागृत विवेक के व्यक्ति हैं। वे कानूनदां है और उत्तरप्रदेश जैसे बीहड़ प्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहे हैं। राष्ट्रपति के दायित्व, मर्यादा और गरिमा को वे अच्छी तरह समझते हैं। मुझे विश्वास है कि कोविंदजी एक अच्छे राष्ट्रपति सिद्ध होंगे।
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