राष्ट्रपति के चुनाव में रामनाथ कोविंद की जीत में जरा भी संदेह नहीं है। भाजपा-गठबंधन के पास यों ही वोटों का स्पष्ट बहुमत है। ज्यों ही कोविंद के नाम की घोषणा हुई, कई प्रांतीय पार्टियों ने उनके प्रति अपना समर्थन प्रकट कर दिया। जो पार्टियां अभी असमंजस में हैं, उनमें से भी कई उनका समर्थन करने पर विचार कर रही हैं। जो पार्टियां अक्सर भाजपा के विरुद्ध वोट करती हैं या हर मुद्दे पर भाजपा-विरोधी रवैया अख्तियार करती हैं, वे भी रामनाथ कोविंद के मामले में नरम पड़ गई हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि कोविंद निर्विरोध राष्ट्रपति चुने जाएंगे। यदि कोविंद निर्विरोध चुने गए तो इसका अर्थ होगा कि भाजपा के प्रतिपक्ष की कमर टूट चुकी है। यों भी राष्ट्रपति के चुनाव को लेकर नीतीश, मुलायम, मायावती, महबूबा, चौटाला, शिवसेना आदि अपने पारंपरिक रवैए से अलग रुख ले रहे हैं।
ऐसे में कांग्रेस बेचारी क्या करे ? कांग्रेस की मजबूरी है। नरेंद्र मोदी ने ऐसा दांव मारा है कि विरोधियों की सिट्टि-पिट्टी गुम है। वे जगजीवन रामजी की बेटी और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार और पूर्व गृहमंत्री सुशील शिंदे को पटा रहे हैं ताकि भाजपाई दलित के विरोध में कांग्रेसी दलित को खड़ा कर दें। वे जिस दलित को भी खड़ा करेंगे, उसका हारना निश्चित है लेकिन ऐसा करने पर कांग्रेस पर दलित-विरोधी होने का ठप्पा नहीं लगेगा। कांग्रेस की कोशिश यह भी है कि मेट्रोमेन श्रीधरन या कृषि वैज्ञानिक स्वामीनाथन या गांधीजी के पौत्र गोपाल गांधी में से किसी की बलि चढ़वा दे। लेकिन ये लोग बलि के बकरे क्यों बनेंगे ? अपने-अपने ढंग से ये बड़े लोग हैं। एक डूबती हुई नाव के लिए ये लोग अपनी प्रतिष्ठा दांव पर क्यों लगाएंगे ? हां, कांग्रेस पार्टी का ही कोई नेता इस बलिदान के लिए आगे आना चाहिए। जिन्होंने जीवन भर मलाई काटी है, वे ही हिम्मत करें, इस नाव को टेका लगाने की ! राष्ट्रपति के चुनाव के बहाने हमारा प्रतिपक्ष, जैसा भी लूला-लंगड़ा है, उसे एक होने और मोदी पर अंकुश लगाए रखने का मौका मिलेगा। लोकतंत्र के अच्छे स्वास्थ्य के लिए भी यह जरुरी है।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
एडवोकेट निरंजन सिँह राठौड says
सत्तर बरस बिताकर सीखी लोकतंत्र ने एक बात,
महामहिम में गुण मत ढूँढो ,देख़ो केवल जात ?
कोविंद को इसीलिए राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया क्योंकि वह छोटी जाति में जन्मे है।
एक आदमी कई सालों से राज्यपाल व् अन्य पदों पर रह चुका है वो पिछड़ किधर से रह गया ?
ये पूछने वाला कोई नहीं है।
नेहरू,गांधी जैसे नकली नेताओ की दी हुई इस व्यवस्था में न्याय और सिद्वान्त नाम की कोई चीज नहीं है।
इस देश का अब हाल बुरा है।
लालू ,मुलायम, मायावती,कई कांग्रेसी और भाजपा व अन्य दलों के नेता देश का अरबो रुपया गबन कर चके है।
कहाँ है न्यायपालिका?
देश आरक्षण व भ्रष्टाचार के कारण कमजोर हो गया है।
एडवोकेट निरंजन सिँह राठौड़
उमाशंकर जोशी says
सोनिया गांधी के आधे-अधूरे और राहुल गांधी के लंगड़े नेतृत्व में कांगेस ने अपनी चमक हमेशा के लिए खो दी है | सत्य में भजपा सांप्रदायिक पार्टी नहीं है जबकि पूरा विपक्ष साम्प्रदायिक है और मुस्लिम परस्त है | हिन्दुओं को जागरूक करना कोई गुनाह नही है | जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गांधी दोनों घोर सांप्रदायिक थे | नेहरू की अदूरदर्शिता और मूर्खता के कारण कश्मीर समस्या और चीन समस्या है | नेहरु को इतिहास का कितना ज्ञान था ये तो वे ही जानते थे किन्तु मालवा का किसान भी जानता है कि जहाँ भीलट बाबा की मूर्ती का स्थान है उस पर किसी और का कब्ज़ा नहीं हो सकता | किन्तु कैलाश पर्वत, जो शिव का धाम है और मानसरोबर जो अमृत कुंड है उस पर बिना किसी विरोध के चीन का कब्ज़ा होने दिया | चीन को तिब्बत दे दिया | गुण्डे से दर गया भारत और नेहरु | जब यह मूर्खता कर ही दी थी तो फिर दलाई लामा को धर्मशाला में रहने और राजनीतिक गतिविधियों की अनुमति देना मूढ़ता नही तो और क्या है | मोदी को तानाशाह बनने से रोकने आज जनता को छोड़कर कोई नहीं है | अस्तु,