जब तीन तलाक का विधेयक लाया गया था, तभी मैंने लिखा था कि यह कानून बहुत जल्दबाजी में बनाया जा रहा है और यह उतना ही अत्याचारी सिद्ध होगा, जितना कि खुद तीन तलाक है। तीन तलाक और उसके विरुद्ध बना कानून दोनों ही अतिवाद के शिकार थे। समझ में नहीं आता कि मंत्रिमंडल ने उस विधेयक के प्रारुप को कैसे पास कर दिया? अब उसमें उसने तीन संशोधन करके उसे राज्यसभा में भेजा है। इसका अर्थ क्या यह नहीं हुआ कि मोदी मंत्रिमंडल कानून-निर्माण के मामले में सावधान नहीं है ? किसी ने भी आकर सर्वज्ञजी के कान में फूंक मारी और विधेयक तैयार हो गया। उस पर सर्वज्ञजी के मंत्रियों ने हां में हां मिला दी। किस मंत्री में दम है कि सर्वज्ञजी से सवाल पूछे कि इस विधेयक में ये प्रावधान क्यों रखे गए हैं या नोटबंदी क्यों की जा रही है या जीएसटी में रोज़ ही ठोक-पीट करने की जरुरत क्यों पड़ रही है ?
इससे भी बड़ा आश्चर्य यह है कि ऐसे निरर्थक, निकम्मे और उलझे हुए प्रावधानों या विधेयकों को संसद का बहुमत भी हरी झंडी दे देता है। हम इन सांसदों को संसद में क्या जी हुजूरी के लिए भेजते हैं ? सत्तारुढ़ दल के अनुभवी सांसद अपने मंत्रियों और सर्वज्ञजी का सही मार्गदर्शन क्यों नहीं करते? उन पर अंकुश क्यों नहीं लगाते? अब तीन तलाक कानून में जो तीन संशोधन किए गए हैं, उनकी वजह से वह काफी बेहतर हो गया है। एक तो मजिस्ट्रेट को अधिकार दिया गया है कि वह आरोपी को जमानत दे सकता है। दूसरा, एफआईआर कोई भी नहीं लिखा सकता। पुलिस में प्रथम सूचना रपट या तो तलाक-पीड़ित पत्नी, उसके रक्त-संबंधी या सुसराल पक्ष के लोग ही लिखा सकेंगे।
तीसरा, यदि पति और पत्नी चाहें तो वे मुकदमा वापस भी ले सकते हैं। इन संशोधनों के साथ इस विधेयक को कानून का रुप देने में फिलहाल कोई बुराई नहीं दिखती। इस कानून की घंटियां इधर साल भर से बज रही हैं, उनके बावजूद तीन तलाक की सैकड़ों घटनाएं देश में हो रही हैं। यदि यह कानून सख्ती से लागू हो गया तो भारत की मुस्लिम महिलाओं के लिए यह वरदान सिद्ध होगा। हमारे पड़ौसी मुस्लिम देशों के लिए भी यह प्रेरणास्पद होगा।
Vaibhav Lodha says
Bilkul sahi kaha tha aapnai … Mainai padha tha…