भारतीय रिजर्व बैंक का यह संकल्प सराहनीय है कि जिन लोगों ने बैंकों से 5000 करोड़ से ज्यादा का कर्ज ले रखा है और उसे चुका नहीं पा रहे हैं, उनके खिलाफ शीघ्र ही सख्त कार्रवाई की जाए। अभी ऐसे 12 लोगों या संस्थाओं को चुना गया है। इनके ऊपर बैंकों का 175,000 करोड़ रु.बाकी है। बैंकों का कुल फंसा हुआ पैसा लगभग 7 लाख करोड़ रु. है याने अभी तो सिर्फ 25 प्रतिशत कर्ज की वसूली पर कार्रवाई शुरु होगी।
इस कार्रवाई के लिए 180 दिन का समय दिया गया है। इस छह माह की अवधि में यह पैसा वापस कैसे होगा, कुछ पता नहीं। कुछ कंपनियां अपने आप को दीवालिया घोषित कर देंगी, कुछ ने अपने कारखानों को पहले ही बेच खाया है और कुछ ने बैंक के पैसे को विदेशों या दूसरी फर्जी कंपनियों में दबा लिया है। इन करोड़पति-अरबपति लोगों को जनता का पैसा डकार जाने में ज़रा भी शर्म नहीं आती। हमारे राजनेता ही इन लोगों को मोटे-मोटे कर्ज दिलाते हैं और उसमें से अपना कमीशन खाते हैं। ये लोग किसानों की तरह आत्महत्या नहीं करते। इन्हें आंदोलन करने की भी जरुरत नहीं होगी। अगर इनको कानून के शिकंजे में फंसने की नौबत होती है तो ये विदेश भाग जाते हैं।
आश्चर्य है कि मोदी-जैसे प्रधानमंत्री की सरकार तीन साल तक सोती रही। अब उसकी नींद खुली है। अब भी वह इन 12 बुरे महा कर्जदारों के नाम छिपाए हुए हैं। क्यों छिपाए हुए हैं ? उसे चाहिए कि सभी बुरे कर्जदारों के नाम टीवी चैनलों और अखबारों में वह बार-बार प्रचारित कर दे। समाज में उनका जीना हराम कर दे। उनकी और उनके परिजनेां की सारी व्यक्तिगत चल-अचल संपत्ति जब्त कर ले और उनके लिए कड़ी से कड़ी सजा का कानून बनाए।
यह संभव है कि ऐसे में कुछ ऐसे उद्योगपति भी प्रताड़ित हो सकते हैं, जिन्होंने जान-बूझकर बैंकों का पैसा नहीं हड़पा है लेकिन गेहूं के साथ घुन तो पिसता ही है। घुन न पिसे तो अच्छा है लेकिन ऐसे मामलों में बैंक के उन अफसरों और नेताओं को घुन बनाकर जरुर पीसा जाना चाहिए जिन्होंने गलत लोगों और कंपनियों को डूबतखाते का कर्ज दिलवाया है। बैंकों का राष्ट्रीयकरण इंदिराजी ने इसीलिए किया था कि आम लोगों को राहत मिले लेकिन यह नेताओं और बड़े ठगों का आश्रय-स्थल बन गया है।
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