कल मैंने लिखा था कि 16 राष्ट्रीय ‘रिसेप’ याने ‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी’ नामक संगठन से भारत का निकल आना अभी एकदम पक्का नहीं है। आशा की कुछ किरणें बाकी हैं। यह कथन सत्य साबित हुआ है। चीनी सरकार के प्रवक्ता ने भारत को पटाने के लिए काफी रचनात्मक बयान जारी किया है। भारत इस संगठन से इसीलिए निकला है कि वह इसके व्यापार समझौते पर दस्तखत कर देता तो इस बात का डर था कि वह चीन के चंगुल में फंस जाता।
यह संगठन अपने 16 देशों के बीच खुले व्यापार को प्रोत्साहित कर रहा है। भारत को डर यही था कि चीनी माल की भारत में बाढ़ आ जाती और भारत के उद्योग-धंधे और रोजगार ठप्प हो जाते लेकिन चीनी प्रवक्ता ने कहा है कि भारत का यह भय तथ्यपरक नहीं है। पिछले दिनों चीन को भारत का निर्यात 15 प्रतिशत बढ़ा है। इसके अलावा एसियान के अन्य देशों के साथ भारत के निर्यात का घाटा चीन से दुगुना है।
चीन से व्यापारिक असंतुलन लगभग 55 अरब डालर का है तो इन देशों के साथ मिलाकर 105 अरब डालर का है। यदि भारत ‘रिसेप’ में रहकर अपने निर्यात और आयात के तटकर पर इन देशों के साथ बहस चलाता तो भारत को ज्यादा फायदा हो सकता था। जहां तक चीन का प्रश्न है, वह दुनिया के सबसे बड़े मध्यम वर्ग का बड़ा बाजार है। भारत इस बाजार को अपने सस्ते और अच्छे माल से पाटने की कोशिश क्यों नहीं करता?
भारत द्वारा इस समझौते के बहिष्कार से सभी देश प्रभावित हो रहे हैं। सभी चाहते हैं कि भारत इसमें फिर से लौटे। वे किसी न किसी तरह भारत की शर्तो को जरुर मानेंगे। हमारे व्यापार मंत्री पीयूष गोयल ने भी आशा प्रकट की है कि यदि भारत की शर्तें मान ली जाएं तो भारत लौटने को तैयार है।
भारत को इस संगठन में रहना है तो उसे अपनी कमर कसनी होगी। उसे इन देशों की जरुरतों और पसंदगियों का बारीकियों से अध्ययन करना होगा और वे जमकर खरीदे, ऐसी चीजें बड़े पैमाने पर पैदा करनी होंगी। यदि भारत इस चुनौती को स्वीकार कर ले तो उसकी आमदनी और रोजगार, दोनों एक साथ बढ़ेंगे। वह अपने आशंकित आर्थिक संकट से भी उबर सकता है।
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