पिछले सप्ताह जब बर्मा में प्रधानमंत्री मोदी ने वहां के रोंहिग्या मुसलमानों की दुर्गति पर तटस्थता जाहिर की थी तो मैंने लिखा था, ‘बर्मा में मोदी का मौन ?’ लेकिन यह भी लिखा था कि मोदी को कूटनीतिक चतुराई दिखानी चाहिए थी। उन्हें बर्मी नेताओं और बांग्लादेश के बीच ऐसा संवाद कायम करवा देना था कि रोहिंग्या लोगों को कुछ राहत मिल जाती। मुझे खुशी है कि यह काम अब हमारे विदेश सचिव डा. जयशंकर ने कर दिखाया है।
नई दिल्ली स्थित बांग्ला-राजदूत की जयशंकर से भेंट के बाद अब भारत सरकार ने अपना रुख बदला है। मोदी की बर्मा-यात्रा के दौरान ‘उग्रवादियों की हिंसा’ की तो निंदा की गई थी लेकिन दो-ढाई लाख रोहिंग्या मुसलमानों के बर्मा से पलायन पर भारत मौन था लेकिन अब भारत सरकार ने बांग्लादेश को आश्वस्त किया है कि वह बर्मा की सरकार से बात कर रही है कि रोहिंग्या लोगों के साथ नरमी बरती जाए।
असली समस्या यह है कि बर्मा या म्यांमार में रहने वाले लगभग 10 लाख रोहिंग्याओं में से सिर्फ 4 हजार को वहां की नागरिकता मिली है। बर्मा के जिस दक्षिण-पूर्व के राखीन प्रांत में ये रोहिंग्या ज्यादातर रहते हैं, वहां गरीबी, अशिक्षा और अविकास का बोलबाला है। बर्मा की राजनीति या व्यापार में रोंहिग्याओं की कोई गिनती नहीं है। इधर उन्हें न्याय दिलाने के लिए कुछ हिंसक उग्रवादियों ने एक गिरोह खड़ा कर लिया है, जिसका नाम है-अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी।
इन हिंसक तत्वों को कुछ अरब राष्ट्र चुपचाप काफी मदद भी भेज रहे हैं। इन तत्वों ने पिछले दिनों बर्मी फौज और पुलिस पर हमला बोल दिया। गुस्साई हुई फौज और बर्मा के बौद्धों ने इतना कड़ा जवाबी हमला बोला कि सारे रोहिंग्या भाग-भागकर बांग्लादेश में शरण ले रहे हैं। भारत में पहले से 40 हजार रोहिंग्या गैर-कानूनी ढंग से रह रहे हैं।
इन रोहिंग्याओं के प्रति संयुक्तराष्ट्र संघ, अमेरिका और यूरोपीय देशों की काफी सहानुभूति है। भारत इनके पक्ष में खुलकर इसलिए नहीं बोल रहा है कि वह बर्मी फौज को नाराज नहीं करना चाहता। लेकिन वह राखीन प्रांत में निर्माण-कार्यों के लिए खुलकर मदद कर रहा है। उससे रोहिंग्याओं को रोजगार तो मिलेगा ही, भारत द्वारा प्रस्तावित कलादान-थलमार्ग योजना भी क्रियान्वित हो सकेगी।
उग्रवादियों ने एक माह के युद्ध-विराम की घोषणा की है और बांग्लादेश ने भी भारत की कूटनीतिक सक्रियता पर संतोष व्यक्त किया है। भारत की इस सुधरी हुई नीति का दक्षिण एशिया के सभी देशों पर अच्छा असर पड़ेगा।
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