रुस, भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की सालाना बैठक आठ माह देर से हुई लेकिन हुई और दिल्ली में हुई, यह अच्छा रहा, क्योंकि पिछले दिनों सारी दुनिया में संदेश यह गया कि भारत अब अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया के साथ मिलकर एशिया में एक नयी चौखंभा राजनीति की शुरुआत कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय जगत में यह भाव फैल गया कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मोदी को अपने मोहजाल में फंसा लिया है। वैसे भी अपनी-अपनी आंतरिक राजनीति में दोनों की जुगलबंदी खूब जमती है। इस छवि को दिल्ली की यह त्रिराष्ट्रीय बैठक छांटने में कुछ हद तक जरुर सहायक होगी। लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान देने योग्य बात यह है कि तीनों राष्ट्रों ने जो 46 पेरे का संयुक्त वक्तव्य जारी किया है, उसमें पूरे तीन पेरे आतंकवाद की भर्त्सना पर लगाए हैं लेकिन पाकिस्तान या उसके आतंकवादी संगठनों का नाम तक नहीं आने दिया गया है।
पाकिस्तान के प्रति दिखाई गई इस लिहाजदारी में भारत भी शामिल है। यदि इसका लक्ष्य पाकिस्तान का अपमान किए बिना उसको आतंक के विरोध के लिए तैयार करना है तो बहुत अच्छी बात है लेकिन इससे यह भी सिद्ध होता है कि हमारे नेता बड़बोले हैं लेकिन दब्बू हैं। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने तो अपने वक्तव्य में आतंकवाद के बारे में बोलते हुए अपना कर्तव्य निभाया लेकिन संयुक्त वक्तव्य में भारत की चुप्पी आश्चर्यजनक है। चीन और रुस भारत का ऐसा कौन सा भला कर रहे हैं कि उन्हें खुश करने के लिए भारत ने आतंक पर दबी जुबान से बात की है। ताजा खबर यह है कि दोकलाम में अब 1600 चीनी फौजी जवान जम गए हैं। जब समझौता हुआ था तो वे 600 थे। दोकलाम में हुई वापसी के बाद चीन ने वहां तीन सड़कें बना ली है। चीनी विदेश मंत्री ने भारत से जाते-जाते काफी सख्त बयान जारी किया है। उसने दोकलाम से सबक लेने की सीख भारत को दी है। रुस ने भारत को सलाह दी है कि वह चीन की एशिया महापथ (ओबोर) योजना में सहयोगी बने। उसे भारत की आपत्तियों की जरा भी परवाह नहीं है। ऐसी बैठक के बाद 46 पेरे के संयुक्त वक्तव्य में लिखी मीठी-मीठी बातें बेतुकी-सी लगती हैं।
ABhatia says
“चीनी विदेश मंत्री ने भारत से जाते-जाते काफी सख्त बयान जारी किया है। उसने दोकलाम से सबक लेने की सीख भारत को दी है। रुस ने भारत को सलाह दी है कि वह चीन की एशिया महापथ (ओबोर) योजना में सहयोगी बने। उसे भारत की आपत्तियों की जरा भी परवाह नहीं है। ऐसी बैठक के बाद 46 पेरे के संयुक्त वक्तव्य में लिखी मीठी-मीठी बातें बेतुकी-सी लगती हैं।”
We seriously need to review our foreign Policy. Even after visiting almost all the main countries of the world by our respected PM, we are not able to generate required support to tackle the problem being faced from our neighbouring countries. The tensions and threats are increasing.