31 अक्तूबर 1984 को सुबह मैं एयर इंडिया के जहाज में बैठा और न्यूयार्क के लिए रवाना हुआ। हमारा जहाज ज्यों ही लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे पर रुका, पायलट ने इंदिराजी की हत्या की घोषणा की। सारे यात्री कांप उठे। जहाज जब न्यूयार्क पहुंचा तो हमारे दूतावास के कुछ अधिकारी जो लेने पहुंचें थे, उन्होंने मुझे बताया कि दिल्ली से दंगों की खबरें आ रही हैं। इन अधिकारियों ने कहा कि गृहमंत्री नरसिंहरावजी का आपके लिए संदेश है कि आप न्यूयार्क रुकने की बजाय तुरंत जहाज पकड़कर विसकोन्सिन युनिवर्सिटी पहुंचे।
मेडिसन नामक शहर में जहाज उतरा। मैं किसी को नहीं जानता था, वहां। क्या करुं ? एक सिख नौजवान जहाज में मेरे साथ था। उसने आगे बढ़कर कहा आप मेरे घर चलिए। सुबह मैं आपको मेडिसन से विस्कोन्सिन छुड़वा दूंगा। उसके घर पहुंचते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए। उस नौजवान सरदारजी की मां के चेहरे का तनाव देखकर मैं दंग रह गया। चैनल चल रहा था और उन पर दिखाई पड़ रहा था कि हमारे हिंदू लोग अपने सिख भाइयों के साथ कितना जानवरपना कर रहे थे। मैंने रात भर कुछ भी खाया नहीं, सो भी नहीं सका लेकिन उस सिख परिवार ने मेरे प्रति जो प्रेम और आदर दिखाया, उसे मैं जीवन भर नहीं भूल सकता। आज 34 साल बाद जब मैंने यह खबर देखी कि कांग्रेसी नेता सज्जनकुमार को उच्च न्यायालय ने आजन्म कारावास दिया है तो मेरी पहली प्रतिक्रिया यह हुई कि इसमें 34 साल क्यों लग गए? यह हमारी न्याय-व्यवस्था का कलंक है। इसके अलावा सज्जन कुमार ये मुकदमा क्यों लड़ते रहे? उन्हें उसी वक्त अपना अपराध स्वीकार करके जेल जाना चाहिए था। अगर वे यह समझते हैं कि निर्दोष सिखों की हत्या करना उचित था और उन्होंने उस समय बड़ी बहादुरी दिखाई तो उसका उचित कानूनी पुरस्कार लेने के लिए वे तैयार क्यों नहीं हुए ?
यह शुद्ध कायरता है। इस मामले में मप्र के मुख्यमंत्री कमलनाथ के नाम को घसीटने का आधार क्या है ? यदि किसी भी बड़े से बड़े नेता के विरुद्ध प्रमाण उपलब्ध हों तो आज भी उन्हें दंडित किया जाना चाहिए, फिर वे दंगे चाहे दिल्ली के हो, गुजरात के हों, बिहार के हों या महाराष्ट्र के हों। ऐसा इसलिए किया जाए कि इंदिराजी की हत्या से भी ज्यादा गंभीर कोई घटना हो जाए तो भी लोग सामूहिक हिंसा पर उतारु होने से डरने लगें।
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