बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की इस बार जैसी भारत-यात्रा रही, वैसी सभी पड़ौसी देशों के प्रधानमंत्रियों की होती रहे तो यह दक्षिण एशिया का पिछड़ा हुआ इलाका अगले 10 साल में यूरोप से भी आगे निकल सकता है। ऐसा इसलिए हो सकता है कि दक्षिण एशिया के देशों में प्राकृतिक संपदा यूरोप से कहीं ज्यादा है और इसके देशों की जनसंख्या उससे कई गुनी ज्यादा है और जवान है। दो मामले ऐसे हैं, जिन पर मोदी और हसीना में तकरार हो सकती थी। एक तो बांग्ला घुसपैठियों और दूसरा रोहिंग्या शरणार्थियों को लेकर ! लेकिन दोनों नाजुक मसलों पर शेख हसीना का रवैया बहुत संतुलित रहा। बांग्ला घुसपैठियों को लेकर प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी जितना शोर मचा रही हैं, उसके विपरीत हसीना ने भारत सरकार की कार्रवाई पर कोई अप्रिय टिप्पणी नहीं की। इसी प्रकार रोहिंग्या शरणार्थियों को फिर से बसाने में भारत जो मदद कर रहा है, उस पर हसीना ने धन्यवाद किया है। इसके अलावा हसीना की इस भारत-यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच ऐसे कई समझौते हुए हैं, जिनसे दोनों देशों के बीच भौगोलिक फासले दूर होंगे, एक-दूसरे की जरुरतें पूरी होंगी और एक-दूसरे के व्यापार में वृद्धि होगी। बांग्लादेश के तटीय क्षेत्र पर भारत 20 रडार लगाएगा, जो उसकी सीमाओं के निगरानी करेंगे। सेशल्स, मालदीव और बर्मा के तटीय क्षेत्रों की निगरानी के लिए भारत ने जो इंतजाम किए हैं, वैसे ही अब बांग्लादेश के लिए भी होंगे ताकि जो आतंकी हादसा 2008 में मुंबई में हुआ था, वैसा कतई दोहराया न जाए। अब बांग्लादेश भारत को प्राकृतिक गैस सप्लाय करेगा, जिससे उसको एक करोड़ 70 लाख डाॅलर की आय प्रति वर्ष होगी। इसके अलावा गैस लाने का रास्ता अब 1700 किमी से घटकर 200 किमी रह जाएगा। दोनों देश अब ऐसी रेल और सड़क व्यवस्था जमाने का भी विचार कर रहे हैं, जिससे भारत के अपने उत्तर-पूर्वी सीमांत राज्यों तक पहुंचने के रास्ते काफी छोटे हो जाएं। बांग्लादेश से होकर जानेवाले रास्ते भारत के अपने प्रांतों के फासलों को काफी घटा देंगे। यह प्रक्रिया मध्य एशिया के राष्ट्रों को उत्साहित करेगी कि वे अफगानिस्तान और पाकिस्तान को प्रेरित करें कि ये दोनों देश भारत और मध्य एशिया के फासले को घटा दें और उससे बेशुमार फायदे भी उठाएं।
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