मैं पहले ही लिख चुका हूं कि मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के भाजपा मुख्यमंत्रियों ने अपने-अपने राज्य में काफी अच्छे काम किए थे लेकिन उनकी हार का बड़ा कारण नोटबंदी, जीएसटी, अनुसूचित संशोधन कानून, फर्जिकल स्ट्राइक, सीबीआई और रफाल-सौदे आदि की बदनामियां रही हैं। सच्चाई तो यह है कि उन्हें उम्मीद से ज्यादा वोट मिले हैं। यह भी ठीक है कि इन हिंदी-प्रदेशों के लोग भाजपा में नए चेहरे चाहते हैं तो क्या यह उचित समय नहीं है, जबकि तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों- शिवराज चौहान, वसुंधरा राजे और रमन सिंह को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया जाए?
ये तीनों जितने अनुभवी नेता हैं और इन्हें आम आदमियों की आकांक्षाओं की जितनी पकड़ है, उतनी मोदी-मंत्रिमंडल के एक-दो मंत्रियों की भी नहीं है। ये तीनों मिलकर केंद्रीय मंत्रिमंडल को काफी वजनदार और विश्वसनीय बना देंगे। इन तीनों राज्यों में हुए चुनाव के पहले ही मुझे लग गया था कि इन राज्यों में भाजपा का जीतना बहुत मुश्किल है। उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के कुछ नेताओं से हुई मेरी बातचीत में मैंने साफ-साफ कहा था कि ये तीनों मुख्यमंत्री हारें या जीतें, यह जरुरी है कि इन्हें केंद्र में लाया जाए और इनके अनुभव का फायदा देश को मिले।
यह ठीक है कि मोदी के मंत्रिमंडल में राजनाथ, गडकरी, सुषमा स्वराज और पीयूष गोयल जैसे योग्य लोग हैं लेकिन ये तीनों नेता भी शामिल हो जाएं तो प्रधानमंत्री को भी उचित सलाह मिल सकती है। अभी तो भाजपा का ‘मार्गदर्शक मंडल’ मार्ग देखते रहने वाला मंडल बन चुका है और मंत्रिमंडल भी ‘‘मातहतों का मौन समूह’’ बन गया है। यदि यह स्थिति अगले छह माह तक बनी रही तो भाजपा की सीटें 2014 के मुकाबले 2019 में आधी भी नहीं रह पाएंगी।
मैं चाहता हूं कि भाजपा यदि विपक्ष में चली जाए तो भी वह सबल विपक्ष की तरह काम करे और यह भी संभव है कि मंत्रिमंडल का विस्तार हो जाए तो भाजपा शायद इस लायक हो जाए कि वह जैसे-तैसे अपनी सरकार बना ले। इन तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के शामिल होने से मोदी सरकार की छवि में विनम्रता, उदारता और शिष्टता की भी अभिवृद्धि होगी। भाजपा के अच्छे दिन लाने के लिए भी यह करना जरुरी है।
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