कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पत्र लिख कर प्रधानमंत्री से कहा है कि वे संसद में महिला आरक्षण के विधेयक को पास करवाएं। 2010 में कांग्रेस सरकार ने इस विधेयक को राज्यसभा में तो पारित करवा लिया लेकिन लोकसभा में इसे वह इस डर से लाई ही नहीं कि उसका वहां बहुमत नहीं था और उसकी सहयोगी पार्टियां उसे गिरा देतीं।
महिलाओं को विधानसभा और लोकसभा में 33 प्रतिशत स्थान देने का विरोध मुलायमसिंह और शरद यादव जैसे समाजवादी नेताओं के साथ-साथ अन्य पार्टियों के नेताओं ने भी किया था लेकिन भाजपा ने उसका समर्थन किया था। उसने अपने 2014 के चुनाव-घोषणा पत्र में इसे कानून बनाने का वादा भी किया था। भाजपा के लिए यह बहुत ही सामयिक पहल होगी। यदि भाजपा सरकार इसे कानून बना दे तो उसका महिला वोट बैंक काफी मजबूत हो जाएगा।
आज देश में लगभग 50 प्रतिशत महिला मतदाता हैं। यदि उनमें से आधी ने भी भाजपा को वोट दे दिए तो कुल वोटों का 12.5 प्रतिशत तो उसकी जेब में होगा। अभी उसे कुल वोटों का 30-31 प्रतिशत ही तो मिला है। तीन साल में ही उसकी नीचे लुढ़कती गाड़ी को यह महिला वोट ही बचा सकता है। इससे बड़ा वोट बैंक कोई और नहीं है। इसमें नोटबंदी और जीएसटी के जैसा, उलट जाने का भी कोई खतरा नहीं है। फायदा ही फायदा है। यह कानून सिर्फ चुनावों पर लागू होगा, नौकरियों पर नहीं।
चुनाव में किस योग्यता की जरुरत होती है? किसी की नहीं ! उम्र सिर्फ 25 साल होनी चाहिए। इसीलिए हमारे समाजवादी मित्र डरें नहीं। सिर्फ कटे बालवालियां ही नहीं, घूंघट और घाघरेवालियां भी सांसद और विधायक बन सकेंगी। यह आरक्षण जितना महिलाओं के लिए होगा, उतना ही औरतों के लिए भी होगा। यदि हमारी संसद, विधानसभाओं और मंत्रिमंडलों में एक-तिहाई स्त्रियां हों तो भारत की राजनीति को नई दिशा मिले बिना नहीं रहेगी।
भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, सत्तारुढ़ पार्टी अध्यक्ष, मुख्यमंत्री, राज्यपाल, सर्वोच्च न्यायाधीश आदि शीर्ष पदों को हमारी महिलाओं ने अब तक अपने आप सुशोभित किया है तो अब यह सही समय है जबकि देश के सभी औरतों को कानून-निर्माण की एक-तिहाई जिम्मेदारी सौंप दी जाए। पंचायतों का सफल प्रयोग हमारा मार्गदर्शक बन सकता है।
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