भारत-जापान संयुक्त घोषणा पर आज चीनी प्रवक्ता ने जो प्रतिक्रिया दी है, उससे साफ जाहिर होता है कि दक्षिण एशिया में अब एक नया शीतयुद्ध शुरु हो गया है। इस शीतयुद्ध के एक खेमे में अमेरिका, भारत और जापान हैं और दूसरे खेमें में चीन और पाकिस्तान है। जहां तक रुस का प्रश्न है, वह अभी बीच में हैं लेकिन ऐन मौके पर वह भी दूसरे खेमे के साथ जाना पसंद करेगा। यदि पूरी तरह से नहीं तो भी कई मुद्दों पर वह चीन और पाकिस्तान का साथ देगा।
इसका अर्थ यह हुआ कि दक्षिण एशिया में एक अघोषित शीतयुद्ध शुरु हो चुका है। इस शीतयुद्ध को मुखरता प्रदान की है, जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबे की भारत-यात्रा ने। इस यात्रा के दौरान ऐसे कई समझौते हुए, जो चीन का नाम लिये बिना, उसकी नीतियों को चुनौती देते हैं। इस यात्रा के पहले ही दोकलाम-विवाद में जापान ने भारत का समर्थन कर दिया था। जापान और भारत ने चीन का नाम नहीं लिया लेकिन उन दोनों ने चीन की दुखती रग पर उंगली रख दी।
दक्षिण चीन सागर और प्रशांत क्षेत्र में दोनों देशों ने सभी देशों की संप्रभुता का सम्मान, स्वतंत्रतापूर्वक व्यापार और यात्रा तथा अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन करने का आह्वान किया। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय इस मामले में चीन के एकाधिकार के विरुद्ध फैसला दे चुका है। इसी प्रकार ‘ओबोर’, उ. कोरिया, सामरिक सहकार, बुलेट ट्रेन, परमाणु-सहयोग, आतंकवाद, एशिया-अफ्रीका में वैकल्पिक जल-थल मार्ग निर्माण आदि मुद्दों पर भारत और जापान की सहमति चीन को सीधी चुनौती है।
चीन को चुभने वाली सबसे नुकीली बात यह है कि जापान अब भारत-चीन सीमांत पर स्थित अरुणांचल और लद्दाख में भी निर्माण कार्य शुरु करेगा। इसी बात पर चीन चिढ़ गया है। चीनी प्रवक्ता ने अपना एतराज जाहिर करते हुए कहा है कि भारत-चीन सीमा-विवाद में किसी तीसरे देश का टांग अड़ाना ठीक नहीं है। जापान और भारत किसी गुप्त योजना को तो लागू नहीं कर रहे हैं ? चीन के इन संदेहों को पाकिस्तान में भी काफी हवा दी जा रही है। वहां मांग यह उठ रही है कि पाकिस्तान अब डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका का बहिष्कार करे और पूरी तरह चीन का पल्ला पकड़ ले। लेकिन ऐसी मांग करने वाले यह क्यों नहीं समझ रहे कि पाकिस्तान का समर्थन चीन उसी पैमाने पर करने की सामर्थ्य नहीं रखता, जिस पैमाने पर अमेरिका करता रहा है। जो भी हो, यह शीतयुद्ध तो शुरु हो गया है। हम आशा करें कि यह गर्म युद्ध में कभी नहीं बदलेगा।
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