अयोध्या-विवाद फिर टल गया। सर्वोच्च न्यायालय ने तारीख आगे बढ़ा दी। अभी एक लाख पृष्ठ के दस्तावेज़ हिंदी, उर्दू और फारसी से अंग्रेजी में होने हैं। मुझे नहीं लगता कि रामजन्म भूमि और बाबरी मस्जिद का मामला अदालतें हल कर सकती हैं। यदि वे फैसला दे भी दें तो भी उसे लागू कौन कर सकता है ? इस नाजुक और राष्ट्रीय महत्व के मसले को अदालत के मत्थे मारने का मतलब यह भी है कि हमारे सारे नेता नाकारा हैं, सारे साधु-संत और मुल्ला-मौलवी नादान हैं, सारे समाजसेवी और बुद्धिजीवी निष्क्रिय हैं। यह मामला कानूनी है ही नहीं और आश्चर्य है कि सब लोग कानून की शरण में चले गए हैं। खुद सर्वोच्च न्यायालय की राय थी कि इसे बातचीत से हल करें।
इस मामले से जुड़े सभी पक्षों से 1992 में मेरी बात चल रही थी। मेरे सुझाव पर प्रधानमंत्री नरसिंहरावजी और विश्व हिंदू परिषद के मुखिया श्री अशोक सिंहल ने सितंबर में होने वाली कार-सेवा को तीन महिने तक टाल दिया था। उस समय का मेरा अनुभव यह था कि हिंदू, मुस्लिम और सरकार तीनों पक्ष इसे बातचीत से हल करने के पक्ष में थे लेकिन 6 दिसंबर के हादसे ने सारी तैयारी पर पानी फेर दिया। अब भी इसके हल के लिए कई सुझाव आए हैं लेकिन मेरी राय में जो सबसे अच्छा, व्यावहारिक और सर्वमान्य सुझाव हो सकता है, वह है, पुणें के डा. विश्वनाथ कराड़ का, जिसका सक्रिय समर्थन पूर्व मंत्री श्री आरिफ मुहम्मद खान और मैं भी कर रहा हूं। हम तीनों की राय है कि रामजन्म भूमि पर राम का भव्यतम मंदिर बने और 60-65 एकड़ जमीन पर सभी प्रमुख धर्मों के पूजा-स्थल बन जाएं। अयोध्या की यह 70 एकड़ जमीन विश्व-तीर्थ बन जाए। विश्व-सभ्यता को यह हिंदुत्व का अनुपम उपहार होगा।
सर्व-धर्म समभाव का यह सगुण-साकार रुप होगा। यह विश्व का सर्वोच्च पर्यटन-केंद्र बन सकता है। ऐसी अयोध्या सचमुच अयोध्या बन जाएगी। न कोई हारेगा न जीतेगा। युद्ध तो होगा ही नहीं। सांप्रदायिक सदभाव की नई नींव पड़ेगी। यह ऐसी भव्य और दिव्य अयोध्या बनेगी कि स्वयं राजा श्रीराम इस अयोध्या में अवतरित हो जाएं तो वे भी इसे देखकर गदगद हो जाएंगे।
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