मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को मेरी हार्दिक बधाई, क्योंकि उसने मोदी सरकार द्वारा जारी किए गए चुनावी बांडों के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका ठोक दी है। मैं पूछता हूं कि देश के अन्य राजनीतिक दलों को क्या लकवा मार गया है? उन्होंने भ्रष्टाचार के इस वट-वृक्ष पर प्रहार क्यों नहीं किया ? इसका जवाब साफ है। सभी दल भ्रष्टाचार के कीचड़ में सिर से पैर तक सने हुए हैं। मार्क्सवादी पार्टी इस मामले में इसलिए सीना ताने हुए है कि इस पार्टी को ये चुनावी बॉंड कौन देगा ? मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार का यह नया पैंतरा निकाला है। इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति या संस्था किसी भी पार्टी को 20 हजार रु0 तक दे सकती है। वह 20-20 हजार के बांड खरीदकर उन्हें किसी भी पार्टी के खाते में जमा करा सकती है। वह नाम बिल्कुल गोपनीय रखा जाएगा।
इस पद्धति से भाजपा ने पिछले प्रादेशिक चुनावों में अंधाधुंध चंदा उगाया है। काला धन सफेद किया है। कांग्रेस को भी ऐसे पैसे पर कोई एतराज नहीं है। यदि सर्वोच्च न्यायालय इस चोरी को पकड़ ले और इसे गैर-कानूनी बना दे तो हमारे चुनावों में थोड़ी-बहुत शुद्धता तो जरुर आएगी। भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार का यह जो नया आयाम खुला है, इस पर रोक लग जाएगी। इसके अलावा राजनीतिक दलों को विदेशों से मिलने वाले पैसे पर कोई रोक-टोक नहीं है। पहले हिंदुस्तान की कम्युनिस्ट पार्टियां रुसी और चीनी पैसा जमकर डकारती थीं।आजकल बोफोर्स, रफाल, जर्मन पनडुब्बी आदि प्रतिरक्षा-सौदे में मिलनेवाली रिश्वत और दलाली की राशियां विदेशी चंदे के बहाने हमारे चुनावों को भ्रष्ट करती हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इसी तरह रुसी पैसे के जाल में फंसे हुए हैं। हो सकता है कि इसी कारण बड़े बेआबरु होकर उन्हें जाना पड़े। हमारे मुख्य राजनीतिक दल और नेता भी इसी मामले में रंगे हाथ पकड़े जा सकते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय को चाहिए कि इस विदेशी चंदे पर वह तुरंत रोक लगाए। अदालत ने सांसदों और विधायकों से अपनी व्यक्तिगत संपदा के स्त्रोतों की सार्वजनिक घोषणा की जो बात कही है, उस पर भी आज तक अमल नहीं हुआ है। यह मौका है कि अगले दो-चार दिन में ही अदालत इन मुद्दों पर कार्रवाई के लिए नेताओं को मजबूर कर दे।
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