सर्वोच्च न्यायालय ने खुद कन्नी काट ली। अपनी टोपी संसद के सिर पर धर दी। उसने कह दिया कि अपराधी सांसदों और विधायकों से पिंड छुड़ाने की जिम्मेदारी संसद की है। इस संबंध में वही कानून बनाए। अपराधों को रोकने की ज्यादा जिम्मेदारी किसकी है? संसद की या अदालत की? अदालतों का मुख्य काम क्या है ? अपराधों को रोकना ! अदालतों ने ऐसे सैकड़ों फैसले अब तक दिए हैं, जो संसद के कानूनों से भी ज्यादा असरदार साबित हुए हैं। यदि वह राजनीतिज्ञों के अपराधों पर कुछ ही हफ्तों में फैसले देने का इंतजाम कर दे तो देश को काफी राहत मिलेगी।
इस मामले में भी उसने जो सुझाव दिए हैं, वे बहुत अच्छे हैं। उन सुझावों पर अगर चुनाव आयोग अमल करवाए तो आधी फतेह तो यों ही हो जाएगी। क्या हैं, वे सुझाव ? पहला, हर पार्टी को अपने अपराधिक उम्मीदवार के हर अपराध की स्पष्ट जानकारी अपनी वेबसाइट पर डालनी होगी। यहां अदालत यह कहना भूल गई कि वह जानकारी मतदाताओं की भाषाओं में हो। दूसरा, हर उम्मीदवार को अपने चुनाव फार्म के जरिए चुनाव आयोग और अपनी पार्टी को अपने सारे अपराधिक मामलों की जानकारी देनी होगी। तीसरा, हर उम्मीदवार को टीवी चैनलों और अखबारों को कम से कम तीन बार इन जानकारियों को प्रचारित करना होगा। हो सकता है कि जनता स्वयं ऐसे उम्मीदवारों का बहिष्कार कर दे। इस समय देश के लगभग एक तिहाई जन-प्रतिनिधि याने कानून-निर्माता ऐसे हैं, जिन्होंने अपने दुराचरण से कानून की धजिज्यां उड़ा रखी हैं।
हमारे राजनीतिक दलों को ऐसे उम्मीदवारों के बारे में खुद कड़ा कदम उठाना चाहिए। यह कहने से काम नहीं चलेगा कि जब तक उनका अपराध सिद्ध न हो जाए और उन्हें सजा न हो जाए, उनका टिकिट हम कैसे काटें? ऐसे उम्मीदवारों के खिलाफ कानून बनाने के लिए कोई भी दल राजी नहीं होगा, क्योंकि राजनीति के हम्माम में सभी नंगे हैं। राजनीति के पूर्ण शुद्धिकरण का बीड़ा जब तक कोई गांधी और लोहिया-जैसा नेता नहीं उठाएगा, राजनीति के बारे में जो कहा जाता है, वह सच ही बना रहेगा कि ‘‘राजनीति गुंडो का सर्वश्रेष्ठ शरण-स्थल है’’। आजकल राजनीति अपने आप में दिन-रात का धंधा बन गया है। जो राजनीति करता है, उसे मजबूरन हरामखोरी करनी पड़ती है। वह अपनी रोजी-रोटी के लिए कोई काम नहीं करता है। जनता की गाढ़ी कमाई इनकी मोटी-मोटी तनखा और भत्तों पर बहाई जाती है और उससे सैकड़ों-हजारों गुना पैसा वे ऊपर की कमाई से जीमते रहते हैं। वे भला अपराध करने से क्यों डरेंगे ?
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