सर्वोच्च न्यायालय ने बलात्कार पीडि़त महिलाओं के बारे में भारत की राज्य सरकारों को बुरी तरह से लताड़ा है। 16 दिसंबर 2012 को निर्भया के साथ हुए बलात्कार के बाद केंद्र सरकार ने निर्भया राशि की स्थापना 2013 में की थी। यह 1000 करोड़ की राशि इसलिए रखी गई थी कि बलात्कार से पीड़ित महिलाओं का इलाज हो सके और उन्हें राहत दी जा सके। उनका पुनर्वास हो सके। लेकिन पांच साल पूरे होने को हैं और 24 राज्यों ने अभी तक कोई हिसाब नहीं दिया है कि उन्होंने ऐसी कितनी महिलाओं के लिए इस राशि का इस्तेमाल किया है।
राज्य तो राज्य, केंद्र प्रशासित क्षेत्रों से भी अभी तक कोई हिसाब नहीं आया है। मध्यप्रदेश को इस राशि का सबसे बड़ा हिस्सा मिला है और उसने अपना हिसाब भी पेश किया है लेकिन उसने बताया है कि 1951 बलात्कार पीड़िताओं को अब तक जो राशि दी गई है, वह है— 6 हजार से 6 हजार 500 रु. तक ! सर्वोच्च न्यायालय के जजों ने इस पर सख्त टिप्पणी की है। उन्होंने कहा है कि क्या सरकार यह पैसा दान में या भीख में दे रही है ? इन जजों का नाराज होना स्वाभाविक है लेकिन इस मामले में कुछ व्यावहारिक कठिनाइयां भी हैं। यदि राज्य-सरकारें मुआवजा राशि एक लाख या पांच लाख घोषित कर दें तो बलात्कार के फर्जी मामलों की भरमार हो सकती है लेकिन पांच-सात हजार रु. तो कुछ नहीं हैं। इस संबंध में केंद्र और राज्य सरकारों को विस्तृत और स्पष्ट व्यवस्था बनानी चाहिए। उज्जैन के ‘सेवाधाम आश्रम’ में लगभग 500 अपंग, पागल, बीमार, कोढ़ी, परित्यक्त बूढ़े और बलात्कार पीड़ित महिलाएं रहती हैं। इस समय लगभग 50 महिलाएं वहां ऐसी हैं, जो बलात्कार के बाद अनाथ होकर रह रही हैं।
उनके इलाज और रख-रखाव में हजारों रुपए खर्च होते हैं और उन्हें वहां महिनों और कभी-कभी सालों रखना पड़ता है। बलात्कार के बाद पैदा हुए बच्चों की भी देखभाल करनी पड़ती है। इस आश्रम को सुधीर गोयल चलाते हैं। मैं उन्हें फादर टेरेसा कहता हूं। इसके संरक्षक के नाते मैं भी उससे जुड़ा हुआ हूं। इंदौर, मुंबई और अन्य शहरों के हमारे मित्र उदारभाव से लाखों रु. प्रतिमाह दान-राशि भेजते हैं। उसी से यह आश्रम चलता है। सरकारें बलात्कार पीड़िताओं को इस आश्रम में भेजती तो है लेकिन वह एक फूटी कौड़ी भी दान में नहीं देतीं। हमारे मुख्यमंत्रियों को ऐसे आश्रमों में तीर्थ-यात्रा समझकर जाना चाहिए और निर्भया राशि का सदुपयोग करना चाहिए।
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