अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान के बारे में अपनी नई नीति की घोषणा की है। यह नीति उनके पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की नीति को तो रद्द करती ही है, खुद ट्रंप के पुराने कथनों को भी शीर्षासन करवाती है। ट्रंप की इस नई अफगान नीति का सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि उसने अफगान अराजकता के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया है। यों तो कई पुराने राष्ट्रपतियों ने भी पाकिस्तान की तरफ उंगली उठाई थी लेकिन ट्रंप ने पाकिस्तान को साफ-साफ चेतावनी दी है कि यदि उसने आतंकवाद को प्रश्रय देना बंद नहीं किया तो अमेरिका उसके खिलाफ तत्काल कार्रवाई करेगा। इसमें फौजी और आर्थिक दोनों कार्रवाइयां शामिल हैं। दूसरी बात भारत के बारे में हैं। पहली बार अमेरिका ने अफगानिस्तान में भारत की भूमिका को खुले-आम रेखांकित किया है। ट्रंप ने कहा है कि भारत अफगानिस्तान में निर्माण-कार्य करे। उसकी आर्थिक सहायता करे। हालांकि ट्रंप अपना फूहड़पन दिखाने से नहीं चूके। उन्होंने भारत को ऐसा करने के लिए इसलिए कहा कि वह अमेरिका से हर साल करोड़ों डाॅलर कमाता है। तीसरी बात, यह कि ट्रंप ने ओबामा द्वारा अमेरिकी फौजी उपस्थिति घटाने की नीति को उलट दिया। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान की शांति और व्यवस्था के लिए जितनी फौजें जरुरी होंगी, उतनी भेजी जाएंगी याने अभी जो 8-9 हजार जवान हैं, उनकी संख्या दुगुनी हो सकती है। चौथी बात, ट्रंप ने ओबामा की समय-सीमा को भी चलता कर दिया है। याने अफगानिस्तान में जब तक जरुरी होगा, अमेरिकी फौजें टिकी रहेंगी। यह वही ट्रंप हैं, जो राष्ट्रपति बनने के पहले दर्जनों बार कह चुके थे कि अफगानिस्तान से अमेरिकी जवानों की वापसी तुरंत होनी चाहिए और अमेरिकी डाॅलरों को अफगानिस्तान में इतनी बेशर्मी से बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए। यों भी अक्तूबर 2001 से 2017 तक, इन सोलह वर्षों में अफगानिस्तान में 2200 अमेरिकी सैनिक मारे जा चुके हैं और अमेरिका के 800 बिलियन डाॅलर (51 खरब रु.) खर्च हो चुके हैं। ट्रंप की पांचवीं बात का जोर इस बात पर है कि अब अमेरिका का ध्यान फौजी कार्रवाई पर ज्यादा होगा बनिस्बत निर्माण-कार्यों पर ! छठी बात, ट्रंप की इस नई अफगान-नीति के कारण दक्षिण एशिया के प्रति चीन और रुस की नीतियों में भी परिवर्तन दिखाई पड़ सकता है। अमेरिका और भारत की समीपता पाकिस्तान को चीन और रुस के नजदीक ले जाएगी। यहां यह भी देखने लायक होगा कि अमेरिका क्या सिर्फ उन्हीं आतंकवादियों के खिलाफ होगा, जो अफगानिस्तान में सक्रिय हैं या उनके भी जो भारत के विरुद्ध भी सक्रिय हैं ? तालिबान के प्रवक्ता ने ट्रंप से कहा है कि वह अफगानिस्तान को अमेरिका की कब्रगाह बनाने पर क्यों उतारु हैं? वह यह बताना भूल गया कि अफगानिस्तान ने ही पहले ब्रिटिश और सोवियत साम्राज्य को धूल चटाई थी। ट्रंप-जैसा मनचला नेता यदि अपनी नीति पर टिका रहा तो अफगानिस्तान और पाकिस्तान का बहुत भला होगा। दोनों राष्ट्रों में शांति हो तो वे काफी तरक्की कर सकते हैं।
Leave a Reply