संयुक्त राष्ट्र संघ में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का पहला भाषण, भाषण कम, क्रिकेट के चौके और छक्के की तरह था। हम आशा करते थे कि पिछले 8-9 माह में ट्रंप ने राष्ट्रपति की कुर्सी में बैठने के बाद यह अच्छी तरह से सीख लिया होगा कि 193 राष्ट्रों की सभा में उन्हें कैसे पेश आना है। लेकिन ट्रंप ने पहला भाषण ही वहां ऐसा दिया, जैसे कि वे मेनहट्टन की किसी भीड़ में बोल रहे हों।
1960 में रुस के निकिता ख्रुश्चौफ ने संयुक्त राष्ट्र में जूता बजाया था और 2009 में लीबिया के कर्नल कज्जाफी ने सं.रा. घोषणा-पत्र वहां नाटकीय ढंग से फाड़ दिया था लेकिन ट्रंप ने अपने भाषण में जो कुलाचें भरी हैं, उनके सामने ये सब नौटंकियां-सी लगती हैं। ट्रंप ने उ. कोरिया के शासक किम को धमकाते हुए कहा कि वे उ. कोरिया को उड़ा देंगे, यदि उ. कोरिया ने अमेरिका को नुकसान पहुंचाया तो !
यह भी कोई बात हुई ? यह तो बिल्कुल वैसी ही गैर-जिम्मेदाराना बात हुई, जैसी किम ने कही थी कि मैं जापान को समुद्र में डुबो दूंगा। अमेरिका दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश है, उसे ऐसी भाषा का इस्तेमाल करने की बजाय उ. कोरिया जैसे छोटे-से देश को किसी तरह समझाने की कोशिश करनी चाहिए। इसी प्रकार ट्रंप ने ईरान के साथ संपन्न हुए परमाणु-ईंधन के समझौते को खत्म करने का भी नारा लगा दिया।
ओबामा के नेतृत्व में यूरोपीय देशों ने ईरान को परमाणु बम के मार्ग से अलग हटाने का यह समझौता किया था, वह अंतरराष्ट्रीय राजनीति की उल्लेखनीय उपलब्धि थी। ट्रंप-प्रशासन ने ईरान पर आजकल नए प्रतिबंध भी थोप दिए हैं। ट्रंप ने आतंकवाद को प्रश्रय देने वाले देशों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की घोषणा की है लेकिन ये ही ट्रंप सउदी अरब जाकर उसके लिए लोरियां पढ़ रहे थे।
ट्रंप के तेवर भरोसे के लायक नहीं हैं। वे जो अच्छी बातें करते हैं, उनके बारे में भी यह भरोसा नहीं रहता कि वे उन पर टिके रहेंगे। उन्होंने संयुक्तराष्ट्र संघ में कई बुनियादी सुधारों की मांग भी की है, जो भारत के लिए हितकर हैं लेकिन ट्रंप पल में तोला, पल में माशा हो जाते हैं। अमेरिका-जैसे शक्तिशाली राष्ट्र की नाव खेने वाला ऐसा नेता पता नहीं कब कितना खतरनाक सिद्ध हो जाए।
श्री कांनत says
क्या इस स्थिति में भारत संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधारों के प्रयास तेज कर दे