यरुशलम को इस्राइल की राजधानी बनाने की अमेरिकी घोषणा अभी संयुक्तराष्ट्र संघ की महासभा में बुरी तरह से पिट गई। अमेरिकी घोषणा के विरुद्ध तुर्की और यमन ने प्रस्ताव रखा। उसका समर्थन 128 राष्ट्रों ने किया और विरोध सिर्फ 9 ने ! 35 राष्ट्रों ने वोट नहीं डाला। महासभा का यह वोट डोनाल्ड ट्रंप के मुंह पर करारा तमाचा सिद्ध हुआ। वोट के पहले ट्रंप ने सभी राष्ट्रों को धमकी दी थी कि जो भी इस निंदा प्रस्ताव का समर्थन करेगा, उस राष्ट्र की खैर नहीं है। ट्रंप ने कहा कि अमेरिका जिन राष्ट्रों पर करोड़ों-अरबों डालर लुटाता है, यदि वे भी अमेरिका का विरोध करेंगे तो ट्रंप-प्रशासन उन्हें देख लेगा। संयुक्तराष्ट्र में अमेरिका की प्रतिनिधि राजदूत निक्की हेली ने कहा है कि सं.रा. संघ का खर्च उठाने वाले अमेरिका के साथ यह एहसान फरामोशी क्यों हो रही है ? ट्रंप और हेली के ये तर्क बताते हैं कि ट्रंप सरकार का दिमाग कितना खोखला है ? तुर्की, जो अमेरिकी सैन्य गुट का सदस्य रहा है, आखिर वह यह प्रस्ताव लाने को मजबूर क्यों हुआ ? ट्रंप प्रशासन का यह सोच कितना घटिया है कि वह विदेशी सरकारों की संप्रभुता को खरीद सकता है ? ट्रंप का दिमाग तो इसी तथ्य से ठीक हो जाना चाहिए था कि सुरक्षा परिषद के सभी अन्य सदस्यों ने अमेरिका के खिलाफ वोट दिया है। उसके, वीटो ने उसे बचा लिया।
येरुशलम को इस्राइल की राजधानी घोषित करने का विरोध उन अरब देशों- मिस्र, जोर्डन, इराक ने भी किया है, जो अमेरिका के घनिष्ट राष्ट्र हैं। भारत ने भी विरोध किया है। भारत का यह अमेरिका-विरोध उन दिनों की याद दिलाता है, जब भारत गुट-निरपेक्षता का पुरोधा था लेकिन इस समय जबकि भारत और ट्रंप की दांत-कटी रोटी है, भारत द्वारा अमेरिका के विरुद्ध वोट करना साहसिक कदम माना जा सकता है। शायद दुस्साहसिक भी! क्या अब ट्रंप का गुस्सा भारत को भी झेलना पड़ेगा ? बेहतर तो यह हो कि मोदी अब ट्रंप को फोन करके समझाए कि घोषणा तो उन्होंने कर दी लेकिन घोषणा को बस घोषणा ही रहने दें और यरुशलम को इस्राइल और फलिस्तीन, दोनों की राजधानी बनाने की कोशिश करें।
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