कांग्रेसी नेता और पूर्व मंत्री वीरप्पा मोइली का कहना है कि कांग्रेस के बिना विपक्ष का कोई भी गठबंधन बनाना उचित नहीं है। उसका अर्थ यही होगा कि आप भाजपा के विरोधियों में फूट डाल रहे हैं और भाजपा को मजबूत बना रहे हैं।
मोइली का तर्क है कि सभी धर्मनिरपेक्ष पार्टियों को एकजुट होकर भाजपा के विरुद्ध लड़ना चाहिए। इन सभी पार्टियों का एक साझा कार्यक्रम हो, जिसके आधार पर 2019 में ये भाजपा को हरा सकें। मोइली ने यह टिप्पणी तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखरराव के इस कथन पर की है कि देश में इस समय एक गैर-भाजपाई और गैर-कांग्रेसी मोर्चा बनाना चाहिए।
राव की यह बात उन्हें शोभा देती है, क्योंकि राज्यों की प्रादेशिक पार्टियों की पटरी अखिल भारतीय पार्टियों के साथ कैसे बैठ सकती है ? ये अखिल भारतीय नेता प्रादेशिक पार्टियों को घास ही नहीं डालते। उनका गठबंधन चुनाव जीत जाए, तब भी ये प्रादेशिक नेता हाशिए के हवाले कर दिए जाते हैं। इसके अलावा राव ने यह भी देख लिया कि कांग्रेस के साथ गठबंधन का अर्थ है- राहुल गांधी को नेता स्वीकार करना।
राहुल के साथ गठबंधन करके उप्र में अखिलेश यादव का हाल क्या हुआ ? यह ठीक है कि देश के हर जिले में कांग्रेस अभी भी जिंदा है लेकिन उसके पास न कोई नेता है, न नीति है। आप धर्मनिरपेक्ष शक्तियों का मोर्चा बनाने जा रहे हैं और उस मोर्चे के संभावित नेता आजकल क्या कर रहे हैं ? धोती और कंठी लपेटकर मंदिरों में धोक मार रहे हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि वे चोटी और जनेऊ चढ़ाकर शिवलिंग की भी पूजा करने लगें। उन्हें देखकर उनकी धर्म निरपेक्ष पार्टी के कार्यकर्ताओं के भी हंसी के फव्वारे छूटते रहते हैं।
सच्चाई तो यह है कि इस मोर्चे का धर्म-निरपेक्षता से कुछ लेना-देना नहीं है। यह मोर्चा जरुर बने लेकिन यह धर्म-निरपेक्ष नहीं, कुर्सी-सापेक्ष्य बनेगा। मोदी-सरकार से हो रहे तीव्र मोहभंग का फायदा सभी उठाना चाहते हैं। प्रधानमंत्री पद के दर्जन भर उम्मीदवार उठ खड़े हुए हैं। उनके पास वैकल्पिक भारत का कोई नक्शा नहीं है। उनमें कोई नेता ऐसा नहीं है, जिसे चुनाव के पहले सारे दल सर्वसम्मति से स्वीकार कर लें। उनके पास कोई लोहिया, कोई जयप्रकाश, कोई रामदेव, कोई अन्ना हजारे भी नहीं है।
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