कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन त्रूदो की भारत-यात्रा भी अजीब-सी रही। वे एक सप्ताह की सरकारी यात्रा पर सपरिवार आए लेकिन आगंतुक प्रधानमंत्री को आजकल जिस गर्मजोशी से लिपट-लिपटकर सम्मान दिया जाता है, उन्हें नहीं दिया गया। वे आगरा, अहमदाबाद और मुंबई गए। उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री से भी भेंट की। आखिरी दिन वे दिल्ली आए। उनकी पत्नी और बच्चों के चित्रों ने भारतीयों को करीब-करीब सम्मोहित कर दिया। दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करते हुए इन कनाडियन मेहमानों ने हमारा दिल जीत लिया। ये लोग मुंबई में हमारे कई फिल्मी सितारों से भी मिले। उनके चुलबुले बच्चों के साथ नरेंद्र मोदी के भावभीने चित्रों ने मोदी की छवि सुधारी लेकिन त्रूदो के साथ हमारी सरकार का रवैया इतना ठंडा क्यों रहा ?
इसका कारण स्पष्ट है। त्रूदो की सरकार और पार्टी का रवैया खालिस्तानियों के प्रति काफी नरम रहा है। यह उनकी राजनीतिक मजबूरी हो सकती है कि कनाडा में रहने वाले 15 लाख भारतीयों में सिखों की बड़ी संख्या है। उनके थोक वोट पटाने के लिए वे खुले-आम उनकी निंदा नहीं कर सकते लेकिन यह संतोष का विषय है कि हमारे प्रधानमंत्री ने जब इस मामले को उठाया तो त्रूदो ने आतंकवाद के विरुद्ध दो-टूक बयान दिया और संयुक्त वक्तव्य में बब्बर खालसा और सिख यूथ फेडरेशन की भर्त्सना की। याद रहे कि इन आतंकवादी संगठनों ने ही कनाडा से उड़े ‘एयर इंडिया’ का जहाज गिरवा दिया था, जिसके कारण सैकड़ों बेकसूर यात्री मारे गए थे। कनाडा से आए एक कुख्यात खालिस्तानी को त्रूदो के स्वागत समारोह में बुलाने पर भी रोष व्यक्त किया गया। कुल मिलाकर त्रूदो की मर्यादित उपेक्षा का असर यह होगा कि अब भारत-कनाडा संबंध ज्यादा साफ-सुथरे होंगे।
यों भी त्रूदो ने मालदीव, रोहिंग्या समस्या और अफगानिस्तान पर भारत की नीतियों का समर्थन किया और छह समझौतों पर दस्तखत भी किए। भारत-कनाडा व्यापार और विनियोग बढ़ाने पर भी सहमति हुई। कनाडा और अमेरिका जुड़वां भाइयों की तरह हैं। आजकल भारत और अमेरिका के बीच जैसी जुगलबंदी चल रही है, उसे देखते हुए कनाडा और भारत के संबंधों को घनिष्ट बनाना कठिन नहीं है। त्रूदो की यह भारत-यात्रा निरर्थक नहीं सिद्ध होगी। शुरु में टेढ़ी दिखाई पड़नेवाली यह यात्रा आखिर में रास्ते पर आ ही गई।
Leave a Reply