Sahitya Amrit, 2005 : विद्यानिवासजी अपने ढंग के अनूठे आदमी थे| अब सोचता हॅूं कि अपने मित्र-मंडल में क्या उनके-जैसा कोई दूसरा है? कोई नहीं है| उनका व्यक्तित्व अनेक उत्कट विरोधाभासों का समागम था वे जितने पारम्परिक थे, उतने ही आधुनिक भी थे| सत्ता के प्रति उनमें जितनी हिकारत थी, उतनी ही ललक भी थी| विद्या-व्यसनियों की तरह निरीह दिखाई पड़ते थे तो अपने क्षेत्र में उपलब्ध पदों और … [Read more...] about अनूठे थे विद्यानिवासजी