कश्मीर के सवाल पर सर्वोच्च न्यायालय ने वही बात कही है, जो उसने राम मंदिर-विवाद के बारे में कही है। मामला बातचीत से हल करें। यों तो अदालतें बनाई जाती हैं, दो-टूक फैसले देने के लिए लेकिन कई मामले इतने नाजुक होते हैं कि सबसे उंची अदालत के फैसले को भी लागू करना असंभव हो जाता है। ऐसे में अदालतें सत्परामर्श की शैली अपनाती हैं लेकिन इसका अर्थ यह भी हुआ कि सरकारें जब अपने कर्तव्य में … [Read more...] about ढाई इंच का मुंह और 56 इंच का सीना
Archives for April 2017
ढाई इंच का मुंह और 56 इंच का सीना
कश्मीर के सवाल पर सर्वोच्च न्यायालय ने वही बात कही है, जो उसने राम मंदिर-विवाद के बारे में कही है। मामला बातचीत से हल करें। यों तो अदालतें बनाई जाती हैं, दो-टूक फैसले देने के लिए लेकिन कई मामले इतने नाजुक होते हैं कि सबसे उंची अदालत के फैसले को भी लागू करना असंभव हो जाता है। ऐसे में अदालतें सत्परामर्श की शैली अपनाती हैं लेकिन इसका अर्थ यह भी हुआ कि सरकारें जब अपने कर्तव्य में … [Read more...] about ढाई इंच का मुंह और 56 इंच का सीना
लोकपाल तुरंत नियुक्त हो
लोकपाल की नियुक्ति के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की राय पर सरकार को तुरंत अमल करना चाहिए। वर्तमान भाजपा सरकार कुर्सी में इसीलिए बैठ पाई है कि पिछली कांग्रेसी सरकार गले-गले तक भ्रष्टाचार में डूबी हुई थी। भ्रष्टाचार और उसकी ज़हरीली खबरों से लोग इतने खफा हो गए थे कि उन्होंने कुछ नौसिखिए लड़कों और एक खोखले प्रतीक की चुनौती को राष्ट्रीय जन-आंदोलन बना दिया था। उसी आंदोलन की लहर पर … [Read more...] about लोकपाल तुरंत नियुक्त हो
हमारे काले धनवाले ‘किसान’!
नीति आयोग के सदस्य विवेक देबरॉय ने कबूतरों के दड़बे में बिल्ली छोड़ दी है। कई किसान नेता और ड्राइंग रुम नेता बौखला गए हैं। वे कह रहे हैं कि यदि किसानों पर आयकर लगाया गया तो देश में बगावत हो जाएगी। बगावत हो या न हो, नेताओं के वोट की मंडियां जरुर लुट सकती हैं। हमारे वित्तमंत्री अरुण जेटली ने अपने मुंह पर संविधान का दुशाला डाल लिया है और कह दिया है कि खेती तो राज्य का विषय है। … [Read more...] about हमारे काले धनवाले ‘किसान’!
हमारे काले धनवाले ‘‘किसान’’!
नीति आयोग के सदस्य विवेक देबराॅय ने कबूतरों के दड़बे में बिल्ली छोड़ दी है। कई किसान नेता और ड्राइंग रुम नेता बौखला गए हैं। वे कह रहे हैं कि यदि किसानों पर आयकर लगाया गया तो देश में बगावत हो जाएगी। बगावत हो या न हो, नेताओं के वोट की मंडियां जरुर लुट सकती हैं। हमारे वित्तमंत्री अरुण जेटली ने अपने मुंह पर संविधान का दुशाला डाल लिया है और कह दिया है कि खेती तो राज्य का विषय है। … [Read more...] about हमारे काले धनवाले ‘‘किसान’’!
नक्सली सफल क्यों होते हैं?
छत्तीसगढ़ के नक्सलियों के खिलाफ फौज के इस्तेमाल की बात मैंने कल लिखी थी लेकिन राज्य सरकार के पुलिस विभाग को भी कसना उतना ही जरूरी है। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा और सुकमा में इतने जवान मारे गए लेकिन जिम्मेदारी किसने ली? किसी ने भी नहीं। क्या प्रदेश के गृह मंत्री ने इस्तीफा दिया। नहीं! केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवानों ने अपनी जान दे दी लेकिन केंद्र या प्रदेश के किसी भी मंत्री ने अपने … [Read more...] about नक्सली सफल क्यों होते हैं?
हिंदी की आरती पर एतराज
तमिलनाडु की द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के नेता एम.के. स्टालिन ने केंद्र सरकार की हिंदी नीति को आड़े हाथों लिया है। ज़रा गौर करें कि उनका अपना नाम विदेशी है। रुसी है। अपने इस रुसी नाम को भी वे ठीक से नहीं लिखते। इसे वे अंग्रेजी के नकलची उच्चारण से लिखते हैं। स्तालिन नहीं, स्टालिन! अब उन्होंने जो लंबा-चौड़ा बयान दिया है, वह तमिल भाषा के समर्थन में उतना नहीं है, जितना अंग्रेजी के समर्थन … [Read more...] about हिंदी की आरती पर एतराज
कश्मीरी हमारे भाई हैं
कश्मीर के हालात काफी बिगड़ रहे हैं लेकिन इसके बावजूद आशा की कुछ किरणें उभर रही हैं। एक तरफ पत्थरफेंकू घटनाओं की तादाद बढ़ती जा रही है, चुनाव में हुआ मतदान बुरी तरह से घट गया है और पीडीपी-भाजपा गठबंधन तनाव के अंतिम छोर पर पहुंच गया है और दूसरी तरफ गृह मंत्री राजनाथ सिंह और राजस्थान की मुख्यमंत्री ने खुली अपील जारी की है कि कश्मीरी नागरिकों के साथ कोई बदसलूकी नहीं की जाए। भारत … [Read more...] about कश्मीरी हमारे भाई हैं
हिंदी की आरती पर एतराज
तमिलनाडु की द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के नेता एम.के. स्टालिन ने केंद्र सरकार की हिंदी नीति को आड़े हाथों लिया है। ज़रा गौर करें कि उनका अपना नाम विदेशी है। रुसी है। अपने इस रुसी नाम को भी वे ठीक से नहीं लिखते। इसे वे अंग्रेजी के नकलची उच्चारण से लिखते हैं। स्तालिन नहीं, स्टालिन! अब उन्होंने जो लंबा-चौड़ा बयान दिया है, वह तमिल भाषा के समर्थन में उतना नहीं है, जितना अंग्रेजी के समर्थन … [Read more...] about हिंदी की आरती पर एतराज
नक्सली हमलाः सरकारों का कायराना रवैया
छत्तीसगढ़ के सुकमा में हुआ जवानों का नर-संहार पहला नहीं है। कश्मीर में जितने लोग मारे जाते हैं, उससे ज्यादा और उससे बुरी तरह छत्तीसगढ़ के जंगलों में मारे जा रहे हैं। इन नक्सलियों को हम आतंकी क्यों नहीं घोषित करते? कश्मीर में खून बहाने वालों और छत्तीसगढ़ में खून बहाने वालों में हम फर्क क्यों करते हैं? छत्तीसगढ़ जब से बना है, याने 2000 से अब तक 11 सौ से ज्यादा जवान मारे गए हैं। … [Read more...] about नक्सली हमलाः सरकारों का कायराना रवैया