नया इंडिया, 15 अगस्त 2013 : दिल्ली की तिहाड़ जेल के कैदियों ने कमाल कर दिया| उन्होंने अपनी जेल की महानिदेशक महोदया को मजबूर कर दिया कि उच्च न्यायालय और मानव-अधिकार आयोग को वे एक पत्र लिखें, जिसमें उनसे मांग की जाए कि उनके मुकदमों की सुनवाई हिंदी में हो| तिहाड़ जेल में इस समय 13,253 कैदी हैं, जिनमें से लगभग 9 हजार पर मुकदमे चल रहे हैं| इनमें से 40 प्रतिशत बिल्कुल निरक्षर हैं| 60 प्रतिशत 12 वीं पास भी नहीं हैं और 90 प्रतिशत गरीब लोग हैं|
इन कैदियों की शिकायत है कि उन पर जो मुकदमे चलते हैं, उनकी सारी बहस अंग्रेजी में होती है| वकील साहब क्या बोलते हैं और जज साहब क्या पूछते हैं, उन्हें पता ही नहीं चलता| उन पर आरोप क्या हैं और उनके बचाव में जो तर्क दिए गए हैं, वे ठीक भी हैं या नहीं, यह भी उन्हें पता नहीं चलता| इसके अलावा जज ने फैसला क्या दिया, यह भी उन्हें तब पता चलता है, जब उनका वकील उन्हें सरल हिंदी में समझाता है| कई बार फैसले के बाद कैदियों को लगता है कि अपने बचाव में वकील से बेहतर तो वे खुद बोल सकते थे| जो खास बात कहनी थी, जज के सामने, उसे तो वकील साहब भूल ही गए| अगर बहस हिंदी में होती तो वह कैदी उन्हें बीच में ही याद दिला सकता था लेकिन अंग्रेजी की बाध्यता के कारण उसके गले पर छुरी फिरती रहती है और उसे पता ही नहीं चलता|
इस बार लगभग दो हजार किशोर-वय के कैदियों ने हिम्मत की और वह पत्र भिजवाया| उन्होंने अपने पत्र् में कहा कि अपना वकील तय करते समय हमारा मानदंड सिर्फ एक ही होता है कि वह अंग्रेजी कितनी अच्छी बोलता है| कैदियों का यह कथन हमारी न्याय-व्यवस्था पर कितना करारा व्यंग्य है| हमारी अदालतों में न्याय के नाम पर जादू-टोना चलता है| इस रहस्यमय जादू-टोने के दो दुष्परिणाम तो एकदम स्पष्ट हैं| पहला, तो आम जनता की जबर्दस्त ठगाई होती है| वकील लोग अंधाधुंध फीस निचोड़ते हैं और दूसरा, सुरसा के बदन की तरह मुकदमे पीढ़ी दर पीढ़ी लंबे होते रहते हैं| इस समय अदालतों में तीन करोड़ से भी ज्यादा मुकदमे लटके हुए हैं| यदि मुकदमे और फैसले अपनी भाषाओं में हों तो वे चटपट होंगे और जादू-टोने की तरह अटपटे और अबूझ भी नहीं होंगे|
सिर्फ भारत-जैसे पूर्व-गुलाम देशों में ही मुकदमे विदेशी भाषा में चलते हैं, वरना अफगानिस्तान और नेपाल-जैसे छोटे-मोटे देशों में भी अदालती काम-काज स्वभाषाओं में होता है| भारत की आजादी सही अर्थों में तभी उपलब्ध होगी, जबकि उसके सारे कानून स्वभाषाओं में लिखे जाएंगे और अदालतों में बहस और फैसले भी स्वभाषाओं में होंगे| तिहाड़ के कैदियों ने क्या अच्छी मांग की है कि हमारी अदालत को अंग्रेजी की कैद से आजाद करो| उन्हें बधाई|
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