नया इंडिया, 4 जून 2014: दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने कल ऐसा निर्णय दिया है, जिसे मैं उनकी मजबूरी तो मान सकता हूं लेकिन उस हिंदी-विरोधी निर्णय का मैं समर्थन नहीं कर सकता हूं, क्योंकि यह मामला सिर्फ उन न्यायाधीश महोदय का ही नहीं है, यह हमारी समस्त ऊंची अदालतों का है। दिल्ली की ऊंची अदालत ने यह मांग रद्द कर दी है कि एलएलएम की भर्ती-परीक्षा हिंदी में हो। कुछ छात्र ऐसे हैं, जो अंग्रेजी समझ तो लेते हैं लेकिन न तो उसे ठीक से लिख पाते हैं न बोल पाते हैं। बजाय इसके कि अदालत विश्वविद्यालयों को हिदायत देतीं कि वे अपनी किताबें और कानून की पढ़ाई भारतीय भाषाओं में शुरु करें, उसने अंग्रेजी की गुलामी पर मुहर लगा दी है। हमारी अदालतें अब भी गुलामी के सीखचों में जकड़ी हुई हैं। अदालतों का काम अपराधियों को सीखचों के पीछे भेजना है लेकिन उन्होंने ऐसा क्या अपराध किया है कि वे खुद सींखचों के पीछे पड़ सड़ रही हैं और उन्हें अपनी सड़न का पता ही नहीं चल रहा है।
यह अपराध है-अंग्रेजी की गुलामी। अंग्रेजी भाषा की गुलामी अंग्रेजो की गुलामी से भी बदतर है। अंग्रेजों को तो हमने ब्रिटेन भगा दिया लेकिन अंग्रेजी को हमने अपने दिलो-दिमाग में बिठा लिया। वह हमारे जजों और वकीलों के दिलो-दिमाग पर राज करती है। हमारे जज और वकील अंग्रेजों के बनाए कानूनों को आज तक अपनी भाषाओं में नहीं कर पाए। सारे कानूनों को स्वभाषा में करना तो दूर की बात है। वे अभी तक अंग्रेजी कानूनों को ही हम पर थोपे चले जा रहे हैं। जो नए भारतीय कानून बनते हैं वे भी अंग्रेजी में ही बनते हैं। यही वजह है कि भारत में न्याय एक जादू-टोना बन गया है। जज और वकील किसी मुकदमे में क्या बहस और क्या निर्णय करते हैं, मुव्वकिल को पता ही नहीं चलता। मामले हिंदुस्तान के होते हैं और नजीरें इंग्लैंड की पेश की जाती हैं। जैसे गांवों में श्याने-भोपे छू-मंतर करते हैं, वैसे ही अदालतों में मुकदमे चलते रहते हैं। अंग्रेजी माध्यम होने के कारण मुकदमे बहुत लंबे वक्त लेते हैं । भारत में कुल 17 हजार जज हैं लेकिन तीन करोड़ मुकदमे पिछले तीस-चालीस साल से अधर में लटके हुए हैं। सिर्फ देरी ही नहीं, न्याय के नाम पर गजब की लूट-पाट भी होती है। वकील लोग एक-एक पेशी के लाखों रु. लेते हैं और जज लोग करोड़ों की घूस खाते हैं! मैं यह नहीं कह रहा हूं कि हमारी अदालतें हिंदी, उर्दू या पंजाबी में काम करने लगेंगी तो यह देरी और यह लूट-पाट एकदम बंद हो जाएगी। लेकिन इतना जरुर है कि इन्साफ और इंसान, दोनों एक-दूसरे को आसानी से सुलभ हो सकेंगे। अंग्रेजों के भारत आने के बहुत पहले से भारत में न्याय-व्यवस्था थी या नहीं? रोमन और ग्रीक लोग भारत से कानून की शिक्षा लेते रहे हैं लेकिन मेरे समझ में नहीं आता कि हमारी अदालतें अब भी अंग्रेजी की गुलामी क्यों करती है।
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