धर्म परिवर्तन को लेकर जो हंगामा संसद में हो रहा था, वह तो अब थम गया है लेकिन इस मामले पर सभी पक्ष यदि शांतिपूर्ण विचार नहीं करेंगे तो यह सारा मामला इतना तूल पकड़ सकता है कि वह नरेंद्र मोदी की सरकार को काफी बड़ी उलझन में डाल सकता है। यह उलझन सिर्फ राष्ट्रीय स्तर की ही नहीं होगी, इसके अंतरराष्ट्रीय आयाम भी हैं। भारत में तथाकथित ‘घर वापसी’ का अभियान तो बहुत छोटा है। मुश्किल के कुछ हजार लोग इससे प्रेरित होकर अपने मूल हिंदू धर्म में लौटते हैं लेकिन धर्म परिवर्तन की जो प्रक्रिया भारत में सदियों को चली आ रही है, उसने करोड़ों भारतीयों को ईसाई और मुसलमान बना दिया है। कई परिवार इतनी अधिक पीढ़ियों से अपने-अपने मजहब का पालन कर रहे हैं कि यदि आप उन्हें भूतपूर्व हिंदू कहें तो वो चिढ़े बिना नहीं रहेंगे।
वे अब भी यह मानते हैं कि हिंदुओं को अपने मजहबों में दीक्षित करना उनका धर्म है। इस बात की उन्हें कोई परवाह नहीं है कि अपना मजहब बदलने वालों की मूल-प्रेरणा क्या है? वे बाइबिल या कुरान पढ़कर या ईसा मसीह और मुहम्मद साहब के व्यक्त्वि पर न्यौछावर होकर अपना धर्म बदलते हैं, क्या? यदि ऐसा है तो उनका धर्म-परिवर्तन पूर्णत: नैतिक है। उस पर कानूनी या सामाजिक रोक लगाना अनुचित है। हां शास्त्रार्थ करके, जैसे कि कभी आर्य समाजी विद्वान किया करते थे, उनका मत-परिवर्तन करने का प्रयास सर्वथा उचित है।
लेकिन जो धर्म-परिवर्तन भारत में सदियों से चला आ रहा है और आजकल जिसे लेकर हंगामा हो रहा है, उसके पीछे कोई श्रद्धा, कोई तर्क, कोई समझ-बूझ है क्या? जैसा अनैतिक कार्य पहले था अब भी है। फर्क इतना है कि उसे घर वापसी कहा जा रहा है। कांग्रेस और आर्यसमाज के प्रसिद्ध बलिदानी नेता स्वामी श्रद्धानंद ने अब से सौ साल पहले जो शुद्धि आंदोलन चलाया था, क्या वह लालच और भय के आधार पर चलाया था? उसमें तर्क, श्रद्धा और समाज-सुधार तीनों तत्व थे। ये तीनों तत्व आज घर वापसी अभियान में अनुपस्थित हैं। महर्षि दयानंद कृत सत्थार्थ प्रकाश में सभी मजहबों (हिंदू धर्म की भी) कड़ी आलोचना की गई है। तब हजारों लोगों की उपस्थिति में कड़े शास्त्रार्थ होते थे और उनसे प्रभावित होकर लोग फैसला करते थे। ऐसे धर्मांतरण का अधिकार संविधान की धारा 25(1) सभी भारतीयों को देती है।
जो घर वापसी आजकल हो रही है, वह बस एक जवाबी कार्रवाई है। जैसे को तैसा। तुमने हमारा मुंह काला किया, हमने तुम्हारा काला कर दिया। तुमने आदिवासियों को धन दिया और बदले में धर्म छीन लिया। हमने भूखे बंगाली मुसलमानों को राशन-कार्ड थमाया और उसे अपने घर में धकेल लिया। यह धर्म परिवर्तन है या अधर्म –परिवर्तन। यह शुद्ध राजनीतिक प्रतिशोध है। आज भी पश्चिम के ईसाई राष्ट्र और मुस्लिम वहाबी तत्व भारतीयों के धर्म-परिवर्तन के लिए करोड़ों- अरबों रुपया बहा रहे हैं। यदि यही क्रम चलता रहा तो घर वापसी को भी कोई रोक नही सकता। कांटे से कांटा निकालने की कोशिश होगी। यदि यह कोशिश चलती रही तो फिर राष्ट्रीय विग्रह को कोई रोक नहीं सकता। इसीलिए जरुरी है कि भय, लालच और ठगी से होने वाले घर-त्याग और घर वापसी दोनों पर रोक लगे।
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