नया इंडिया, 5 जनवरी 2014 : अन्ना हजारे ने भाजपा अध्यक्ष राजनाथसिंह को एक पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि गुड़गांव में उनका पुतला लगवाने में वे मदद करें। गुड़गांव में अन्ना का एक भक्त उनका पुतला लगवाना चाहता है और भाजपा के कार्यकर्ता उसका विरोध कर रहे हैं। भाजपा के कार्यकर्ता विरोध क्यों कर रहे हैं, हमें पता नहीं है लेकिन अगर वे पुतला लगाने का ही विरोध कर रहे हैं तो वे गलत हैं, क्योंकि भाजपा के कई नेताओं के पुतले देश भर में लगे हुए हैं।
लेकिन अन्ना द्वारा अपने ही पुतले के लिए वकालत करना बहुत अजीब-सी बात है। ऐसी भूल तो वही आदमी कर सकता है जो बिल्कुल बुद्धू हो, जिसे यही समझ न हो कि उसके इस कदम का लोगों पर कितना बुरा असर पड़ेगा। या ऐसा पत्र वही आदमी लिख सकता है, जिससे जो आदमी जब जैसा चाहे, वैसा लिखा ले। ऐसा आदमी तो मुहम्मद बिन तुगलक से भी ज्यादा खतरनाक सिद्ध हो सकता है। अन्ना हजारे का कुछ भरोसा नहीं कि वे कब क्या बोल दें या कब क्या कर दें? वे कभी मोदी की प्रशंसा कर देते हैं और कभी निंदा, वे कभी रामदेव के पांव छूते हैं और कभी कहते हैं कि उन्हें वे मंच से नीचे उतार देंगे, कभी वे अरविंद केजरीवाल की तारीफ करते हैं और कभी उस पर आग बरसाते हैं। अन्ना हजारे और राहुल गांधी, दोनों के मानसिक स्तर में कितनी समानता है। दोनों ही वैसा नाच दिखाते हैं, जैसी कि चाबी भर दी जाती है। उम्र के अंतर से कोई अंतर नहीं पड़ता। दोनों ही गांधी बन गए हैं। एक फिरोज गांधी का पोता होने के कारण गांधी है और दूसरा गांधी टोपी लगाने के कारण गांधी है। गांधी के नाम से हम जिस महात्मा को जानते हैं, उस महात्मा गांधी से इन दोनों का दूर-दूर का कोई रिश्ता नहीं है। दोनों को महात्मा गांधी के बारे में न्यूनतम जानकारी भी नहीं है। अन्ना तो भगतसिंह और चंद्रशेखर आज़ाद की रट लगाए रहते हैं। यह अच्छा है लेकिन हम तो अभी गांधी की बात कर रहे हैं।
जहां तक पुतला लगाने की बात है, अन्ना से बढ़िया पुतला कहां मिलेगा? अन्ना पुतले के अलावा क्या हैं? इस पुतले में जब तक अरविंद की चाबी भरी रही, यह नाच दिखाता रहा। अब यह पुतला शुद्ध पुतला रह गया है। गुड़गांव के भक्त को क्या सूझी कि अब वह पुतले का पुतला बनवा रहा है। पुतला बनवाने के बारे में डाॅ. राममनोहर लोहिया का विचार है कि किसी के मरने के 300 साल बाद उसका पुतला बनना चाहिए याने किसी महापुरुष की महिमा 300 साल तक टिकी रहे, तब वह पुतले के लायक बनता है लेकिन अब तो तीन साल ही काफी हैं। दो-तीन साल में ही आजकल महिमा खिसक लेती है। कुर्सी खिसकी या प्रचार खिसका तो महिमा खिसकी! इसीलिए मायावती ने करोड़ों-अरबों खर्च करके अपने और कांशीराम के पुतले खड़े करवा दिए। लोहियाजी की तरह मैं 300 साल नहीं कम से कम 30 साल तक इंतजार करने का पक्षधर हूं। कम से कम दो पीढ़ियों तक किसी का नाम चले तो वह पुतले के लायक समझा जाए। सरकारी पैसे से बने जिंदा लोगों के पुतले तो जनता को ही तोड़ देने चाहिए और उनके पत्थर अपने शौचालयों में जड़वा लेना चाहिए। अन्ना का पुतला कोई अपने पैसों से बनवा रहा है तो बनवाए। आपको आपत्ति क्यों हैं? बस आप तो यह देखें कि उस पुतले के मुंह पर से कौओं और पंक्षियों की बीट बराबर साफ होती रहे।
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