नया इंडिया, 20 फरवरी 2014: अन्ना हजारे अपनी स्थिति निरंतर हास्यास्पद बनाते जा रहे हैं। अरविंद केजरीवाल को राजनीति से अलग रहने का उपदेश देने वाले गुरुवर अन्ना अब अपने चेले की ही राह पर चल पड़े हैं। सच्चाई तो यह है कि गुरु गुड़ रह गया है और चेला शक्कर बन गया है। चेले ने अपनी पार्टी खड़ी कर ली, खुद मुख्यमंत्री बन गया, अपनी सरकार खड़ी कर ली, चुनाव लड़ लिया और अच्छी खासी संख्या में सीटें भी जीत लीं और अब वह राष्ट्रीय राजनीति में भी खम ठोक रहा है। और गुरुजी का क्या हाल है? बंगाल की प्रांतीय नेता ममता बनर्जी के पिछलग्गू बनने को तैयार हो गए हैं? वे उनका प्रचार करेंगे और लोकसभा के चुनाव जितवाकर उन्हें प्रधानमंत्री बनवाएंगे।
वे नेताओं को चिट्ठियां पेलते रहते हैं। उन्हें सुझाव देते रहते हैं। बिना मांगे ही मार्गदर्शन करते रहते हैं। अभी उन्होंने लगभग सभी दलों के नेताओं को पत्र लिखे। नेताओं ने उनकी चिट्ठी रद्दी की टोकरी के हवाले कर दी। कोई जवाब नहीं दिया। जवाब नहीं मिला, यह तो अन्ना को पता है लेकिन क्या उनको यह भी पता है कि नेताओं को यह भी पता है कि उस चिट्ठी का असली लेखक कौन है? नेता बड़े घाघ हैं। उन्हें यह पता है कि अन्ना तो बेचारे किसी भी प्रकार की राजनीतिक चिट्ठी लिख ही नहीं सकते। कोई और छुटभय्या अन्ना के नाम से उन्हें यह प्रेम-पत्र भेज रहा है। जिसने चिट्ठी अन्ना के नाम से लिखी है, शायद उसकी याददाश्त कमजोर है। उसे यह याद नहीं रहा कि अन्ना तो चुनावों, राजनीतिक दलों और नेताओं के खिलाफ हैं।
अन्ना की राजनीतिक समझ का हाल यह है कि एक दिन वे मुझसे पूछने लगे कि इन सारे राजनीतिक दलों को अवैध घोषित कर दिया जाए, खत्म कर दिया जाए तो कैसा रहे? मैंने कहा, क्यों? तो उन्होंने कहा कि संविधान में तो कहीं नहीं लिखा है कि भारत में राजनीतिक दल होने चाहिए। तो ऐसे महान और मौलिक विचारक अन्नाजी ने एक 17 सूत्री पत्र जब सारे नेताओं को भेजा तो सिर्फ ममता बनर्जी ने उसका जवाब दिया।
जाहिर है कि अन्ना ममता पर मुग्ध हो गए। दुनिया के सारे गुण उन्हें ममताजी में दिखाई पड़ने लगे। वे इसी बात पर फिदा हैं कि ममता बनर्जी बहुत सादगी से रहती हैं। उनका अपना कोई मकान नहीं, कार नहीं, कोई बैंक-जमा नहीं। इसीलिए उन्हें प्रधानमंत्री बनना चाहिए। हाय, अन्नाजी तो ममताजी से भी कितने सादे हैं? उनका सोच भी कितना सादा है? इस सादगी पर कौन न मर जाए, या खुदा! उनको ममता बनर्जी अपने-जैसी ही लगती हैं। प्रधानमंत्री बनने के लिए यदि योग्यता का मापदंड यही है तो अपने नागा साधुओं से बेहतर उम्मीदवार कौन हो सकता है? स्वयं अन्ना ही प्रधानमंत्री क्यों नहीं बन जाते? वे तो राहुल गांधी से भी ज्यादा भोले हैं। अन्ना और राहुल की जोड़ी तो बेजोड़ होगी। भारत के करोड़ों मतदाताओं का ये दोनों भोले प्रचारक काफी मनोरंजन करेंगे।
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