नया इंडिया, 21 नवंबर 2013 : अन्ना हजारे को यह गलतफहमी हो गई है कि उनके नाम का अब भी कोई इस्तेमाल हो सकता है। यदि ऐसा नहीं है तो वे अरविंद केजरीवाल को चिट्ठी ही क्यों लिखते? स्वयं अन्ना ने कई बार कहा है कि यदि मैं चुना लडूं तो मेरी जमानत जब्त हो जाएगी। भला, ऐसे आदमी के नाम पर कौन कितने वोट बटोर सकता है? ‘आप’ पार्टी चुनाव अपने दम पर लड़ रही है। यदि उसे अन्न का ही टेका लेना होता तो वह पार्टी बनाती ही नहीं। जब अन्ना का नाम देश की हवा में सर्वत्र तैर रहा था, तब भी मैंने अपने लेखों और भाषणों में कहा था कि हमारे देश के भोले लोग किसी मायाजाल में तो नहीं फंस रहे हैं? जो लोग एक बना-बनाया आंदोलन नहीं चला सके और सारे देश को निराशा के गर्व में ढकेल दिया, वे अब ‘आप’ पार्टी के पीछे पड़ गए। यह तो अरविंद और उसके साथियों का दम-गुर्दा है कि उन्होंने आंदोलन की राख के ढेर में से एक पार्टी खड़ी कर दी। यह पार्टी चाहे दिल्ली विधानसभा की पांच सीटें भी न जीत पाए लेकिन इसने दिल्ली के दिग्गजों के पसीने छुड़ा दिए हैं। अन्ना हजारे ने अरविंद को यह चिट्ठी क्यों लिखी? इसलिए कि अन्ना का झंडा फहरना बंद हो गया है, जब डंडा ही न होगा तो झंडा कैसे फहरेगा? अन्ना का डंडा कौन था? अरविंद! जब अरविंद हट गया तो अन्ना जमीन पर आ गए। डंडे के बिना झंडे को जेसे तह लगाकर अलमारी में रख देते हैं, वैसे ही अन्ना को नेपथ्य में चले जाना चाहिए था लेकिन उन्हें गलतफहमी हो गई कि वे एक महान जन-आंदोलन के जनक हैं, नेता हैं। वास्तव में अन्ना एक भले और भोले कार्यकर्ता हैं। उनकी सफेद धोती और टोपी के कारण वे एक अच्छे प्रतीक बन गए।
लोकपाल के नाम पर जो भीड़ पहले जंतर-मंतर और फिर रामलीला मैदान में जमा हो गई थी, उसी से अन्ना और उनके साथियों को यह गलतफहमी हो गई थी। वह भीड़ न तो लोकपाल के लिए थी और न अन्ना के लिए। वह तो सरकार के भ्रष्टाचार के विरुद्ध थी। भीड़ अपने आप जमा हुई थी। वह अन्ना की वजह से नहीं थी। अन्ना भीड़ के वजह से अन्ना बन गए। अब भीड़ नहीं है तो अन्ना की कीमत गन्ना बराबर भी नहीं रही। जो लोग अन्ना से चिपके रहे, उन्हें दाने और भूसे में फर्क करना नहीं आता। अब भूसे को शिकायत है कि हाथ, हम दाना क्यों न हुए? ये हताशा के मारे लोग अन्ना का दुरुपयोग कर रहे हैं। उस भोले गांवदी आदमी से ये लोग उटपटांग चिटि्ठयां दगबा रहे हैं। अरविंद ने तो अन्ना का सदुपयोग किया और उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया लेकिन अन्ना से चिपके लोग अब अपने लिए उनका दुरुपयोग कर रहे हैं। वे पूछ रहे हैं कि आप अन्ना के नाम से पैसा क्यों बटोर रहे हैं? क्या उनके नाम में अब कोई दम रह गया है, लोग अकसर चकाचौंध में एकाध बार फिसल जाते हैं, लेकिन आपने क्या उन्हें वज्र-मर्खू समझ रखा है कि वे दुबारा धोखा खाएंगे। लोग पैसा भेज रहे हैं, ‘आप’ पार्टी को, जिसका सारा हिसाब पारदर्शी है। वेबसाइट पर उपलब्ध है। अन्ना की चिट्ठी का जवाब देने में अरविंद केजरीवाल अत्यंत विनम्रता का व्यवहार कर रहे हैं। इससे अन्ना की छवि गिर रही है और अरविंद की उठ रही है। अन्ना यदि इसी लीक पर चलते रहे जो वे और अधिक निराशा के जंजाल में फंसते चले जाएंगे। यदि उन्हें कुछ अच्छे साथी मिल जाएं तो वे देश में बड़े जन-आंदोलन चलाने की कोशिश कर सकते हैं, जो कि एक पार्टी बनाने से कहीं बड़ी चीज होगी लेकिन पहले वे अपना खरा-खरा और निर्मम मूल्यांकन करें कि उनमें नेतृत्व की न्यूनतम योग्यता भी है या नहीं? धक्के से मिली शोहरत को अन्ना गंवाते जा रहे हैं और अरविंद उसे भुनाते जा रहे हैं। इसी से अनुमान लगता है कि कौन कितना चतुर है!
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