नया इंडिया, 15 जनवरी 2014: सर्वोच्च न्यायालय ने जब न्यायमूर्ति ए.के. गांगुली के खिलाफ जांच बिठाई तो उन्हें क्या पता था कि उन्होंने बर्र की छत्ते में हाथ डाल दिया है। अभी गांगुली का इस्तीफा भी नहीं हुआ था कि दूसरा उससे ज्यादा आपत्तिजनक मामला सबसे ऊंची अदालत के चेहरे पर उग आया। गांगुली ने अपराध तब किया था जब वे सेवा-निवृत्त हो चुके थे लेकिन न्यायमूर्ति स्वतंत्रकुमार पर कोलकाता की विधि स्नातिका ने जो आरोप लगाया है, वह उस समय का है, जब वे अदालत की उस पवित्र कुर्सी पर विराजमान थे। सर्वोच्च न्यायालय ने एक सेवा-निवृत्त जज के कुकर्म पर तो जांच बिठा दी लेकिन सेवारत जज के बारे में वह चुप हो गया लेकिन वह स्नातिका चुप नहीं हुई। उसने मुकदमा दायर कर दिया। यह और भी खतरनाक है। जांच में तो सिर्फ इतना होता है कि कोई दोषी पाया जाए तो वैसा बता दिया जाता है। कोई सजा नहीं होती लेकिन अब मुकदमा चलेगा और स्वतंत्र कुमार दोषी पाए गए तो वे जेल की हवा खाएंगे।
स्वतंत्रकुमार की खाल गांगुली से भी मोटी है। उन्होंने टीवी चैनलों और अखबारों को मान-हानि की चुनौती दे दी है। उन्होंने कोलकाता की लड़की के साथ हुए यौन-दुर्व्यवहार की खबर क्या दे दी, माननीय जज साहब की मान-हानि कर दी। क्या यौन-दुर्व्यवहार की खबर मनगढंत है? चैनलों और अखबारों ने तो वही छापा है, जो उस लड़की ने कहा है। लड़की ने कहा है कि उक्त जज ने अपने कमरे में बुलाकर मुझे अपने पास आने को कहा, मेरे कंधे का चुंबन किया और अपनी बांह मेरे गले में डाल दी। उसके अनुसार यह घटना 28 मई 2012 को हुई। इतना ही नहीं, उस जज ने इस लड़की से कहा कि तुम मेरे साथ यात्रा करोगी? और होटल के कमरे में रहोगी? जज का यह रवैया देखकर लड़की घबरा गई और अपना प्रशिक्षु-कर्म छोड़कर दो दिन बाद ही कोलकता चली गई। गांगुली के खिलाफ हुई कार्रवाई से इस लड़की की भी हिम्मत खुली और इसने सर्वोच्च न्यायालय से जांच की अपील की लेकिन सर्वोच्च न्यायालय पहले ही निर्णय कर चुका था कि सेवा-निवृत्त जजों के इस तरह के मामलों में वह कोई जांच नहीं बिठाएगा। जरा सोचें कि क्यों किया उसने ऐसा निर्णय? क्या इसलिए नहीं कि उसे अंदाज़ा था कि ज़रा ढक्कन खोला नहीं कि दर्जनों सांप पिटारे से निकलकर फुंफकारने लगेंगे।
यदि देश की सर्वोच्च अदालत की यह हालत है तो कल्पना कीजिए कि सरकारी दफ्तरों, स्कूलों और कालेजों में क्या स्थिति होगी? जहां-जहां स्त्री-पुरुष साथ-साथ काम करते हैं, उन सब स्थानों में सदाचार और मर्यादा की रक्षा तभी होगी, जबकि आंतरिक स्वच्छता बनाए रखने के लिए कठोरतम नियम-कानून होंगे। कानून-क़ायदे भी काफी नहीं हैं। जब तक बाल्यकाल से लोगों को ऊँचे संस्कार नहीं मिलेंगे और आत्मानुशासन का अभ्यास नहीं होगा, सारे कानून-कायदे धरे रह जाएंगे। सारी दुनिया को कानून पढ़ाने वाले सबसे ऊंचे जजों का यह हाल है तो साधारण लोगों की बात ही क्या है? यहां जजों की यौन-शुचिता आजकल सामने आ रही है। यदि उनकी अर्थ-शुचिता के किस्से प्रकट होने लगें तो देश में तूफान उठ खड़ा होगा लेकिन अर्थ-शुचिता का सवाल शायद ही उठे, क्योंकि पैसा देनेवाला, लेनेवाले से अधिक भ्रष्ट होता है। वह इन लड़कियों की तरह पवित्र और निर्दोष थोड़े ही होता है। वह रिश्वत के राज़ क्यों खोलेगा और कोई जज इतना बड़ा आदमी नहीं है कि वह ज्याँ जेक्स रुसो, लियो या ताल्सताय या गांधी की तरह अपने पापों का घड़ा खुद ही फोड़ने पर उतारु हो जाए।
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