R Sahara, 9 Nov 2003 : अंग्रेजी अखबार जिस अफगान सुंदरी का नाम ‘वीदा समदजई’ लिख रहे हैं, उसके नाम का शुद्घ उच्चारण वेदा होना चाहिए| अफगानिस्तान में कई लोग अपनी बेटियों का नाम वेदा और अवेस्ता भी रखते हैं| काबुल विश्वविद्यालय के पूर्व उप-कुलपति डॉ. अहमद जावेद की दोनों बेटियों के नाम यही थे लेकिन जिस वेदा समदजई के बिकनीवाले फोटो ने सारे इस्लामी जगत को हिला रखा है, वह डॉ. जावेद की बेटी नहीं हो सकती, क्योंकि उसकी आयु इस समय 38-40 के आस-पास होगी| इस आयु की महिला विश्व-सुंदरी प्रतियोगिता में क्यों जाने लगी ? इसके अलावा डॉ. जावेद फारसीवान ताजि़क थे जबकि समदजई तो पठान होते हैं| पठान की बेटी और लगभग निर्वस्त्र हो, इससे बड़ा तमाचा क्या हो सकता है, इस्लामी जगत पर ! पश्चिमी अखबार और फोटो एजेंसियॉं इस फोटों को बढ़-चढ़कर छाप रहे हैं, क्योंकि यह तालिबान के देश का है| तालिबान को चिढ़ाने की इससे ज्यादा तीखी हरकत क्या होगी ? परसों एक समारोह में पाकिस्तान के नए राजदूत मेरी बगल में बैठे थे| वे भी उस फोटो पर बुरी तरह से बरस रहे थे| काबुल में भी तीव्र प्रतिक्रिया हुई है| काबुल सरकार और मुल्ला वर्ग ने अपना क्रोध जमकर प्रकट किया है| जाहिर है कि वेदा समदजई अब काबुल में पॉंव नहीं धर सकेगी| इतिहास का चक्र्र भी कैसे घूमता है ? यह वही अफगानिस्तान है, जो कभी गांधारी का पीहर था| यह वही गांधार है, जिसके मनोरम चित्रों और मूर्तियों ने विश्व कला के इतिहास में चार चॉंद लगाए| पिछले 30 वर्षों से लाखों अफगान गैर-इस्लामी देशों में रह रहे हैं| उनके बच्चे वहीं पले-बढ़े हैं| उनसे मध्ययुगीन आदर्शों के अनुपालन की आशा करना व्यर्थ है| यों भी बादशाह अमानुल्लाह और जाहिरशाह के लगभग पचास वर्ष के राज-काल में अफगानों का पर्याप्त पश्चिमीकरण हुआ है| ऐसी स्थिति में वेदा समदजई को तो मंच पर, आज न कल, आना ही आना था| इस मामले में अफगानिस्तान से ज़रा भारत की तुलना करें| भारत कोई कम परम्परावादी देश नहीं है लेकिन यहॉं बिकिनीधारणी विश्व-सुंदरियों को सारा प्रचारतंत्र अपने सिर पर बिठा लेता है| इसके बावजूद न तो उन्हें कोई सौन्दर्य की देवी मानने को तैयार है और न ही उन्हें देखकर कोई आग-बबूला होता है|
डॉ.मुबशरहसन
जुल्फिकारअली भुट्टो के बहुचर्चित वित्तमंत्री डॉ. मुबशर हसन आजकल दिल्ली में हैं| वे अस्सी साल के हैं| वे पहले पाकिस्तानी हैं, जिन्होंने भारत-पाक सीमा पैदल पार की| भारत-सरकार के 12 सूत्री प्रस्ताव का एक प्रस्ताव यह भी है कि 65 साल से ऊपर के नागरिकों को बस या रेल या हवाई जहाज के अलावा पैदल सीमा पार करने दी जाए| डॉ. मुबशर पिछले 10-12 वर्षों से भारत-पाक मैत्री का अभियान चलाए हुए हैं| कुछ वर्ष तक मुबशर साहब नियमित भारत आते और यहॉं हमारे प्रधानमंत्रियों, विदेश मंत्रियों, अन्य दलों के शीर्ष नेताओं तथा अन्तरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञों से मिलते-जुलते| भारत की तरफ से यही काम पाकिस्तान जाकर मैं करता| राजीव गॉंधी के बाद के सभी प्रधानमंत्रियों से उनका अच्छा परिचय रहा है लेकिन वे अभी तक वर्तमान प्रधानमंत्री से नहीं मिल पाए हैं| आजकल वे श्री निखिल चक्रवर्ती के 90वें जन्म-दिवस के सिलसिले में भारत आए हुए हैं| जन्मदिन समारोह में मुबशर साहब का भाषण सुनने राजधानी के नामी-गिरामी लोग जमा हुए थे| उनमें पूर्व राष्ट्रपति नारायणन भी थे| मुबशर साहब का मानना है कि पाकिस्तानी नेता चाहें तो वर्तमान सरकार को दुबारा चुनाव जिता सकते हैं| मुझे उनकी बात में काफी सार नज़र आता है| यदि करगिल नहीं होता तो अटलजी की कामचलाऊ सरकार का जीतना मुश्किल हो जाता| पहले करगिल-युद्घ ने उन्हें जिताया, अब कोई करबद्घ मैत्री उन्हें जिता सकती है, इसमें क्या शक है ?
हिंदीप्रेमीअमितजोशी
हिंदी के प्रसिद्घ साहित्यकार हिमांशु जोशी के बेटे अमित जोशी नॉर्वे से ‘शांतिदूत’ नामक पत्र तो कई वर्षों से निकाल ही रहे हैं| इधर उनके बारे में एक सुखद समाचार अभी-अभी मिला है| वे नॉर्वे की एक प्रांतीय विधानसभा के सदस्य चुने गए हैं| उन्होंने अपने चुनाव के दौरान नॉर्वे के प्रधानमंत्री से अपने पक्ष में एक अपील जारी करवाई| इस अपील पर नॉर्वेजियन प्रधानमंत्री के हस्ताक्षर हिंदी में थे| जिस निर्वाचन-क्षेत्र से अमित चुनाव लड़ते हैं, उसमें भारतीयों से ज्यादा पाकिस्तानी रहते हैं लेकिन अमित को कोई फर्क नहीं पड़ता| उन्हें सभी वर्णों और जातियों का समर्थन मिलता है| लगभग दो दशक से नॉर्वे में रहने के बावजूद अमित के हृदय में प्रज्ज्वलित हिन्दी की ज्योति मद्घिम नहीं पड़ी है| हिन्दीप्रेमी पिता के हिन्दीप्रेमी बेटे को बधाई !
रश्मिनाखरे
श्रीमती रश्मि नाखरे आजकल पुणे और इंदौर की सैर कर रही हैं| पिछले लगभग 30 वर्षों से वे अमेरिका में हैं| उन्हें नॉर्थ केरोलाइना में बड़े आदर की दृष्टि से देखा जाता है| वे नीग्रो बच्चों की शिक्षा-दीक्षा का काम इतने मनोयोग से करती हैं कि उन्हें कई बड़े-बड़े अमेरिकी सम्मान मिल चुके हैं| कुछ भारतीय प्रवासी उन्हें ‘हमारी मदर टेरेसा’ कहते हैं| अच्छा हुआ कि वे सेवा के नाम पर धर्मान्तरण नहीं करतीं| वे केवल सेवा करती हैं| दो साल पहले उनके पतिदेव प्रो. अमृत नाखरे ने नॉर्थ केरोलाइना में मेरे अनेक व्याख्यान आयोजित करवाए| नाखरे साहब इंदौर में मुझे राजनीतिशास्त्र पढ़ाते थे| वे राजनीतिदर्शन के गहरे पंडित हैं| पिछले 40 साल से अमेरिकियों को पढ़ा रहे हैं लेकिन जब मुझे वे स्थानीय अखबारों के संपादकों से मिलाने ले गए तो उन संपादकों ने नाखरे साहब का परिचय अपने स्टाफ से यों कहकर करवाया : “मीट रश्मि नाखरेज़ हसबैंड|” रश्मिजी इंदौर के प्रसिद्घ डॉक्टर मुल्ये की बेटी हैं| जब रश्मिजी और नाखरे साहब की शादी हुई तो नाखरे साहब की तरफ से सारा इन्तज़ाम मेरे जिम्मे था| नाखरे साहब काफी सुंदर और दुबले-पतले थे| 1969 में नाखरे साहब जब वाशिंगटन में मुझसे मिलने मेरे घर आए तो मैं कहीं बाहर था| जब मैं रात को लौटा तो मेरी अमेरिकी मकान-मालकिन ने मुझसे कहा कि ‘नाखरे नाम का आपका एक छात्र आपसे मिलने आया था|’ कैसी विडम्बना है, नाखरे साहब के लिए उनकी पत्नी और उनका पि्रय शिष्य, दोनों ही घाटे का सौदा हैं|
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