R Sahara, 29 June 2003 : बोस्टन में जनरल मुशर्रफ से मिलना लगभगग तय था| वे वहॉं अपने बेटे बिलाल के पास गए थे| उनके छोटे भाई डॉ. नावीद मुशर्रफ शिकागो में रहते हैं| संयोग की बात है कि जिस दिन पाकिस्तान में तख्ता-पलट हुआ (12 अक्तू्र-1999)मैं शिकागो पहुंचा और उसी रात डॉ. नावीद के घर मेरा भोजन हुआ, जो कि पहले से तय था| डॉ. नावीद के साथ् इस बीच सम्पर्क बना रहा और यह तय हुआ कि इस बार ‘राष्ट्रपति मुशर्रफ’ से जमकर बात हो, खास तौर से प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की पहल के सन्दर्भ में ! लेकिन ज्यों ही सूरीनाम से पीट्रसबर्ग पहॅुचे, मालूम पड़ा कि जनरल साहब ने ‘राग करगिल’ अलाय दिया है और उसके जवाब में उप-प्रधानमंत्री आडवाणी ने अमेरिका में और प्रधानमंत्री वाजपेयी ने भारत में कोड़ा फटकार दिया है| इतने बिगड़े हुए माहौल में क्या बात हो सकती थी? बस, बात की बात होकर रह गई ! भारत और पाकिस्तान की बात कभी सिरे ही नहीं चढ़ेगी, यदि हम इस खुशफहमी में जीते रहे कि कोई तीसरा देश हमारे मामले सुलझा देगा| हम दोनों के बीच जब तीसरा देश आता है तो हमेशा पाकिस्तान का माथा फूलने लगता है| राष्ट्रपति बुश भारत को कुछ भी दिलासा दें, वे पाकिस्तान को पटरी पर नहीं ला सकते|
भारत-पाक संबंध कैसे सुधरें, एराक़ और अफगानिस्तान में अब अमेरिका क्या करे और ईरान व कोरिया के साथ उसका वर्ताव क्या हो, इस तरह के मुद्दों पर प्रो. रिचर्ड फ्रीडमेन से एक घंटा सम्वाद हुआ| प्रो. फ्रीडमेन शिकागो के ‘नेशनल स्ट्रेजी फोरम’ के अध्यक्ष हैं| प्रो. फ्रीडमेन इस दृष्टिकोण से सहमत दिखाई पड़े कि अमेरिका सारी दुनिया को डंडे के जोर पर काबू नहीं कर सकता| जैविक अस्त्रों और आतंकवाद के बहाने अमेरिका एराक़ और अफगानिस्तान में घुस तो गया लेकिन दोनों राष्ट्रों की आतंरिक दशा घोर असंतोषजनक है| अफगानिस्तान के पुनर्निमाण के लिए उसने आधा अरब डॉलर भी नहीं दिया जबकि पाकिस्तान को उसने चार अरब डॉलर से जयादा दे दिया| यदि एराक़ में वर्तमान अव्यवस्था चलती रही और अमेरिका एराकी तेल से डॉलर नहीं निचोड़ पाया तो राष्ट्रपति बुश अगला चुनाव बुरी तरह हार जाऍंगे| बुश ने पाकिस्तान के हाथ गरम करके मुशर्रफ को तो ‘बुशर्रफ’ बना लिया है लेकिन अभी तक न तो उसामा बिन लादेन का पता है न सद्दाम का और न ही जैविक अस्त्रों का| यहॉं बुश की काफी खिल्ली उड़ रही है| अमेरिका की अर्थ-व्यवस्था काफी डॉंवाडोल हो रही है| लगभग 20 लाख लोग बेरोजगार हो गए हैं| अनेक भारतीय और अमेरिकी मित्रों के परिवारों में कोहराम मचा हुआ है| अनेक भारतीयों को मजबूरन वापस लौटना पड़ रहा है| नौकरियों में आपाधापी मची हुई है| सॉफ्टवेयर-संकट तो है ही, अनेक ट्रेवल एजंसियॉं बंद हो गई हैं, होटल-मालिक दीवालिया हो गए हैं| फिर भी कुछ भारतीय मजबूती से आगे बढ़ रहे हैं|
शिकागो में श्री निरंजन शाह और न्यूयॉर्क में श्री आशीष वेंगसरकर से मिलकर सुखद आश्चर्य हुआ| शाह को शिकागो पहुंचे लगभग तीस साल हुए है| उन्होंने अपनी ‘ग्लोबट्रॉटर’ नामक कम्पनी के ज़रिए अरबों रूपए कमाए हैं| वह मूलत: इंजीनियरी फर्म है| इस फर्म ने शिकागो के प्रसिद्घ ओ ‘हेयर हवाई अडे का निर्माण तो किया ही है लेकिन वह ऐसी पहली अमेरिकी फर्म है, जिसे किसी हवाई अडे के रख-रखाव का ठेका भी मिला है| शाह सिर्फ अरबपति ही नहीं हैं, अमेरिकी राजनति में भी गहरा दखल रखते हैं| वे राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के निजी मित्र हैं| वे और उनकी पत्नी प्रतिमा शाह हाइट व्हाइट हाउस में कई बार क्लिंटन के मेहमान रह चुके हैं| क्लिंटन उन्हें अपने साथ भारत भी लाए थे| भारत-अमेरिकी संबंधों को सुद्दढ़ बनाने में वे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं| अमेरिका के अनेक प्रभावशाली नेताओं पर उनका अच्छा प्रभाव है| इसका कारण उनका मालदार होना तो है ही, उदार और विनीत होना भी है| वे वणिकों के विनय का मूर्तिमंत रूप हैं| शिकागो के ओकब्रुक नामक क्षेत्र में चार एकड़ की वाटिका में उन्हांेने अपना सुन्दर-सा मकान बनया है, जो किसी भी अमेरिकी के लिए ईर्ष्या का कारण हो सकता है| वे शुद्घ शाकाहारी हैं|
इसी प्रकार न्य जेर्सी में अपने अमेरिकी मित्रों द्घारा आयोजित पार्टी में एक भारतीय भाई को देखकर अटपटाहट और आनंद साथ-साथ हुए| डॉ. आशीष वेंगसरकर सिर्फ 38 साल के हैं और वे 500 करोड़ रू. का व्यवसाय कर रहे हैं| उनकी कम्पनी ‘फोट्रयूरिस’ ऐसे यंत्र तैयार करती है, जो ऑप्टिकल फाइबरों के दोनों तरफ लग जाते हैं| उनके कारण संचार का घनत्व और गति, दोनों तीव्र हो जाते हैं | दुनिया की बड़ी-बड़ी टेलिफोन कम्पनियॉं उनके यंत्र इस्तेमाल करती हैं|’ इस समय जबकि सॉफ्टवेयर डूब रहा है, आशीष का हार्डवेयर तैर रहा है| यह कम्पनी अभी तीन साल पहले ही आशीष ने शुरू की है| आशीष की पत्नी डायना अमेरिकी है| आशीष और डायना कुछ वर्ष पहले तक विश्व प्रसिद्घ ‘ल्यूसेंट’ और ‘बेल लेबोरेटरी’ में नौकरी करते थे| चार साल पहले आशीष ने हलर्टन स्कूल से एम.बी.ए. किया और वैज्ञानिक से व्यापारी बन गए| इसी ‘ल्यूसेंट’ में तीन साल पहले कर्नाटक के अरूण नेत्रवाली सर्वोच्च पद पर पहुंचे थे लेकिन अब वे कहीं और चले गए हैं|
शिकागो में सेम पित्रोदा से भी भेंट हुई| सत्येन का अमेरिकी अपभ्रश है-सेम| अभी-अभी उनकी हृदय की शल्य-चिकित्सा हुई है| राजीव गॉंधी के ज़माने के टेलिफोन और कम्प्यूटर क्रांति के जन्मदाता यही पित्रोदा हैं| गुजरात के किसी अनाम सुतार के बेटे का अमेरिका जाकर करोड़पति बन जाना और फिर लौटकर मातृभूमि की सेवा में निरत हो जाना कोई साधारण बात नहीं है| सेम फिर अमेरिका में रहने लगे हैं लेकिन उनका दिमाग भारत पर ही लगा रहा है| भारत की वर्तमान संचार-व्यवस्था और सत्तारूढ़ व विरोधी नेताओं के बारे में खुलकर बात हुई|
भारत की राजनीति के बारे में, जहॉं भी जाऍं, भारतीय जमकर पूछताछ करते हैं| मुख्य प्रश्न होता है, अगली सरकार किसकी बनेगी? शिकागो के पास के काकी में रहनेवाले डॉ. राहुल दीपंकर ने कुछ भारतीय संस्थाओं के नेताओं को बातचीत के लिए लंच पर बुलाया था| दीपंकरजी से 1999 में दक्षिण एशियाई विद्घानों के विश्व-सम्मेलन में भेंट हुई थी| उन्होंने श्रोताओं की बीच से उठकर कुछ विचारोत्तेजक सवाल मुझसे पूछे थे| यह लंच भी काफी विचारोत्तेजक रहा| लंच में आए एक व्यक्ति के अलावा, जो जल्दी चले भी गए, सभी ने मुझसे कहा कि आप देश के नेताओं को बताऍं कि सभी प्रवासी भारतीय भाजपा के साथ नहीं हैं| लंच में आए नेतागण गुजरात से गुस्साए हुए थे| किसी अन्य लंच पर शिकागो के कुछ भारतीय पत्रकार बंधुओं ने कहा कि इन गुस्साए हुए नेताओं का यह स्थायी भाव है| गुजरात नहीं तो कुछ और बहाना वे जरूर बना लेते|
डॉ. नावीद मुशर्रफ कसे अलावा कई अन्य पाकिस्तानी मित्रों से संवाद हुआ| नावीद को पता ही न था कि उनके भाई ने करगिल पर क्या बोल दिया| अन्य पाकिस्तानी भी भौंचक्के थे कि जनरल मुशर्रफ जैसे चतुर और सावधान आदमी से यह भूल कैसे हो गई? यपाकिस्तानियों को चिन्ता है कि अटलजी चीनी नेताओं को पटा न लें और भारतीयों को चिन्ता है कि मुशर्रफ बुश-प्रशासन की ऑंखों पर पर्दा प डाल दें|
(न्यूयॉर्क)
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