06 जुलाई 2002 : हर मज़हब ने अपने भक्तों को स्वर्ग के सब्ज बाग़ दिखाए हैं, लेकिन वह स्वर्ग मरने के बाद ही मिलता है| असली सवाल यह है कि जीते-जी स्वर्ग कैसे मिले ? यदि कोई जीते-जी स्वर्ग देखना चाहता हो तो उसे अमेरिका आना चाहिए| स्वर्ग के सारे सुख यहाँ उपलब्ध हैं| इन्हें देखकर हर व्यक्ति सुखी हो जाए, यह आवश्यक नहीं, क्योंकि सुख-दुख तो मूलत: मन की अवस्थाएँ हैं, लेकिन यदि भौतिक सुविधाएँ सुख का कारण हैं तो अमेरिका सुखों का स्वर्ग है|
अमेरिका की किसी भी उप-नगरीय बस्ती में आप चले जाइए, वहाँ की सफाई और करीनेदारी आपको दंग कर देगी| हर मकान ऐसा लगता है, जैसे कल ही बनकर खड़ा हुआ हो| अपने मकानों पर रंग-रोगन करना और उन्हें टिप-टॉप रखना मानो अमेरिकी जीवन की अनिवार्यता है| लगभग हर मकान के आगे और पीछे घाँस के दालान और बगीचे होते हैं| यदि आपका घर किसी छोटे शहर में है या न्यूयॉर्क, वाशिंगटन और शिकागो जैसे बड़े शहरों के दूरस्थ उप-नगर में है तो वे बड़ा भी होगा और उसके बाग-बगीचे इतने बड़े भी हो सकते हैं कि उनमें तरण-ताल, छोटी-मोटी झील और हिरणों व खरगोशों के खेलने के लिए जंगल भी होंगे| मैं कई अमेरिकी मित्रेंi के ऐसे मकानों में भी रहा हूँ, जो कई-कई एकड़ों में बसे हुए हैं| इन मकानों के बगीचों में घाँस के दालान इतने सजे-सँवरे रहते हैं कि अपने सिर के बाल भी क्या सजेंगे ? अमेरिका में ज़मीन सस्ती है| वह भारत से तीन गुना बड़ा है और उसकी जनसंख्या भारत की एक-तिहाई भी नहीं है| बड़ी ज़मीनोंवाले महलनुमा मकानों की बात जाने दें, शहरों के अंदर की घनी बस्तियों के मकान भी यहाँ तरतीब से बने हुए दिखाई पड़ते हैं| उनमें से कई पुराने जरूर लगते हैं लेकिन वे भी वातानुकूलित हैं| लगभग हर घर के तलघर में या मचान में वातानुकूलन का बड़ा संयन्त्र् लगा होता है| जिस घर में मनुष्य को सर्दी या गर्मी न सताए, वह स्वर्ग नहीं तो क्या है ?
लगभग हर घर में ऐसे नल लगे हुए हैं, जिनमें गर्म और ठंडे पानी की टोंटिया हैं| स्नानघर में भी फव्वारे में आप जैसा पानी चाहें, वैसा आएगा, बाथ टब में खड़े होकर या बैठकर लोग प्राय: फव्वारे से नहाते हैं| बाथ टब पर रंग-बिरंगे प्लास्टिक के पर्दे लगे होते हैं ताकि पानी फर्श पर न गिरे| फर्श पर अक्सर मखमली गलीचा बिछा होता है| स्नानघर और गलीचा ? यह कैसे हो सकता है ? यहाँ ऐसा ही है| कमोट के चारों तरफ और उसके ढक्कन पर भी मखमली आवरण चढ़ा रहता है| यह गलीचा गंदा और गीला इसलिए नहीं होता कि पानी का प्रयोग सिर्फ बाथ टब और वाश वेसिन में होता है| निबटने के बाद का काम भी कागज से ही होता है| बाथरूमों को सुगंधित बनाए रखने के लिए ‘रूम फ्रेशनर्स’ के अलावा सुगंधित पुष्प और अगरू आदि भी रखा जाता है| बाथटब के बाहर छह-छह टावेलों के सेट भी रखे जाते हैं, लगभग वैसे ही जैसे कि पाँच सितारा होटलों में होते हैं| हर बाथरूम में एग्जॉस्ट फेन (बाहर हवा फेंकनेवाले पंखे) भी लगे होते हैं| हवाई अड्डों, दफ्तरों तथा अन्य सार्वजनिक स्थलों के शौचालय भी काफी साफ़-सुथरे होते हैं|
सामान्य अमेरिकी घरों में बेडरूमों के अलावा बड़े-बड़े लिविंग रूम होते हैं, जिन्हें अपने यहाँ ड्राइंग रूम कहा जाता है| घर के हर कमरे में पूरे फर्श पर गलीचा बिछा होता है| एक इंच भी खाली जगह नहीं होती| पूरे घर में तरह-तरह का संुदर फर्नीचर रखा होता है| फर्नीचर भी इस तरह का कि जादू का पिटारा-सा लगे| घूमनेवाले सोफे, छोटी-बड़ी होनेवाली मेजें, नक्काशीदार अलमारियाँ और कुर्सियाँ कई घरों को लगभग कला-संग्राहलय बना देती हैं| बाहर के हरे दालानों और बगीचे के लिए प्लास्टिक और खुरदरी लकड़ी का फर्नीचर रखा जाता है| अमेरिकी घरों में पियानों, बड़े पर्दे का टीवी तथा ‘म्यूजि़क सिस्टम’ तो आम बात है| रसोई में छोटे-बड़े ऐसे-ऐसे उपकरण होते हैं कि खाना बनाना बहुत सरल हो जाता है| यों भी अमेरिकी घरों में भारत की तरह दोनों वक्त ताज़ा खाना नहीं बनता| ज्यादातर चीज़ें तो रेडीमेड ही होती हैं| उन्हें सिर्फ गर्म करना होता है| ‘माइक्रोओवन’ में यह काम दो-तीन मिनिट में ही हो जाता है| लोगों के फि्रज अनगिनत चीज़ों से भरे होते हैं| यहाँ का औसत फि्रज दुगुने आकार का होता है| उसके अलावा ‘डीप फ्रीजर’ उससे भी बड़ा होता है, जिसमें खाने-पीने की चीज़ें हफ्तों सुरक्षित रहती हैं| यहाँ किसी की रसोई में चूल्हा, अंगीठी या स्टोव दिखाई नहीं पड़ता| प्राय: बिजली के ओवन का इस्तेमाल होता है| बर्तन धोने के लिए फि्रजनुमा ‘डिशवाशर’ होता है| खाने-पीने की सभी कच्ची और पक्की चीज़ें या तो अल्मारियों में बंद होती हैं या ढककर रखी जाती हैं| ढक्कनदार कचरापेटी हर रसोई में रखी रहती है| इसीलिए अमेरिकी रसोई इतनी साफ़ रहती है कि लगता ही नहीं कि अभी कुछ देर पहले वहाँ खाना बना था और खाया गया था| अमीर से अमीर परिवार की महिला को भी खाना खुद बनाना पड़ता है, इसीलिए मर्द और औरत दोनों मिलकर अपना खाना तैयार करते हैं| घर में रहनेवाली अमेरिकी औरत लाखों में एक होती है| यहाँ पूर्णकालिक नौकर मिलना असंभव-सा ही है| कुछ सम्पन्न लोग हफ्ते में एक बार साफ-सफाई के लिए घंटों के हिसाब से लोगों को काम पर रखते हैं| अन्यथा लिपाई-पुताई से लेकर घाँस काटने का काम भी खुद ही करना पड़ता है| इसीलिए अच्छी कमाई के बावजूद अमेरिकियों को साँस लेने की फुर्सत नहीं होती| शनिवार और रविवार की छुट्टियाँ साफ-सफ़ाई, साप्ताहिक खरीदी और सोने में ही बीत जाती हैं| इसीलिए इस अमेरिकी स्वर्ग में अनगिनत सुविधाओं के बावजूद आम आदमी बड़ा बदहवास मालूम पड़ता है|
आदमी आराम से जी सके और प्रकृति उसकी कठपुतली बन जाए, इस दृष्टि से यहाँ क्या-क्या उपाय नहीं किए गए हैं| आदमी खड़ा रहता है और उसके पाँव के नीचे की सड़क और सीढि़याँ चलती रहती हैं| आप खड़े-खड़े ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँच जाते हैं| हर जगह लिफ्ट लगी मिलती है| फासले तय करने के लिए चिकनी और सपाट सड़कें बनी हुई हैं और यहाँ कारें साइकिलों की तरह चलती हैं| नाइयों, धोबियों और चौकिदारों के पास भी कारें हैं| यहाँ कारें और बसें इतनी लंबी-चौड़ी और आरामदेह होती हैं कि उन्हें चलता-फिरता घर भी समझा जा सकता है| वातानुकूलित और कम्प्यूटर नियामित कारों में अब ऐसी व्यवस्था हो गई है कि उसके पटल पर यदि आप गंतव्य स्थल का नाम भर दें तो हजार मील की यात्रi में भी आपको किसी से रास्ता पूछने की जरूरत नहीं है| कार का कम्प्यूटर हर मोड़ पर आपको सही रास्ता बाताता जाता है| आधुनिक कारें ऐसी भी हैं, जो आपको टक्कर से आगाह करती हैं और टक्कर हो जाने पर घायल होने से भी बचाती हैं| भारत के विपरीत यहाँ सड़क के दाएँ तरफ चलना होता है और कार में बैठते ही बेल्ट बाँधना होता है| अमेरिका में सैकड़ों और हजारों मीलों की यात्रi लोग अपनी कार से खुशी-खुशी करते हैं लेकिन इसके बावजूद दोस्तों और रिश्तेदारों को आपस में मिले हुए बरसों बीत जाते हैं| टेलीफोन और ई-मेल ही सम्पर्क के मुख्य साधन हैं| टेलीफोन यहाँ सस्ता है| चार-पाँच अमेरिकी पैसों में प्रति मिनिट बात होती है| स्थानीय और बाहरी ‘कालों’ में ज्यादा फर्क नहीं है| 25 रू0 प्रति मिनिट में भारत बात हो जाती है| लगभग हर घर और दफ्तर के टेलीफेान के साथ ‘रेकार्डिंग मशीन’ लगी होती है| कुछ टेलीफोन कम्पनियों ने ऐसी सुविधाएँ भी दे रखी हैं कि आप घंटों बात करें और आपको कुछ देना न पड़े| यहाँ लगभग हर आदमी के पास टेलीफोन है लेकिन उससे बात करना आसान नहीं, क्योंकि एक तो ‘रेकार्डिंग मशीन’ लगी होती है याने आपका संदेश मिलने के बाद उसकी जब इच्छा होगी, तब वह आपसे बात करेगा| हो सकता है कि तब आपकी ‘रेकार्डिंग मशीन’ लगी हुई हो| दूसरा, अमेरिका इतना विशाल देश है कि एक ही देश में अनेक तरह के टाइम चलते हैं| यदि न्यूयॉर्क में अभी शाम है तो लॉस एंजलीस में मध्य-रात्रि हो सकती है| जब तक घनिष्ट परिचय न हो, कोई किसी के घर पर फोन नहीं करता| मोबाइल फोन और कम्प्यूटर सर्वत्र् छाए हुए हैं| लोग घंटों कम्प्यूटर और टीवी के सामने बैठे-बैठे बिता देते हैं| फोन करने पर रेस्तरां खाना घर भिजवा देते हैं| फोन पर ही रेल और जहाज के आरक्षण हो जाते हैं| हवाई अड्डे पर जाकर आप अपना परिचय-पत्र् या ड्राइविंग लाइसेंस दिखाएँ और जहाज में बैठ जाएँ| किराए का भुगतान पहले ही ‘क्रेडिट कार्ड’ से हो जाता है| यदि नकद की जरूरत हो तो उसके लिए बैंक की लाइन में लगने की जरूरत नहीं होती| बैंक के बाहर कार में बैठे-बैठे ही स्वचालित मशीन से आप अपना चेक भुना सकते हैं| कार में बैठे-बैठे ही आप सिनेमा भी देख सकते हैं और कार से उतरे बिना ही उसकी धुलाई-सफाई भी करवा सकते हैं| जैसे लोग निजी कारों में घूमते हैं, वैसे ही कई लोग निजी हेलिकॉप्टरों और हवाई जहाजों का इस्तेमाल करते हैं| उन्हें खुद ही चलाते हैं|
अमेरिका के सुपर बाज़ारों के क्या कहने ? कई-कई फर्लांग तक फैले हुए और कई-कई मंजिले ! पूरे के पूरे वातानुकूलित| आप घंटों उनमें घूमें, फिर भी पूरे नहीं देख सकते| दुनिया की कौनसी चीज़ है, जो वहाँ नहीं मिलती| आजकल हर बाज़ार चीनी माल से पटा हुआ है| दुनिया के हर कोने से आए हुए ताज़े फल और सब्जियाँ भी यहाँ उपलब्ध हैं, मसाले और भोजन-सामाग्री भी| जितनी वाक्र-स्वतंत्र्ता है, उतनी ही यौन-स्वतंत्र्ता है, यहाँ| सामान्य स्त्रियाँ भी परियों की तरह सजी-धजी रहती हैं| धर्मग्रन्थों के स्वर्ग के दृश्य यहाँ सर्वत्र् देखे जा सकते हैं लेकिन इस स्वर्ग के नेपथ्य में कुछ और भी खदबदाता रहता है, उसका जि़क्र कभी और !
6 जुलाई 2002
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