नया इंडिया, 26 अगस्त 2013: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने चौरासी कोसी परिक्रमा की याचिका को रद्द कर दिया है। इसे रद्द करते समय जो तर्क उसने दिए हैं, वे कोसी परिक्रमा के औचित्य और आग्रह पर कई प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं। अदालत का कहना है कि परिक्रमा करना कोई धार्मिक अधिकार नहीं है और इसके अलावा याचिकाकर्ता यह नहीं बता सके कि कई वर्षों से यह क्यों नहीं हो रही थी? दूसरे शब्दों में इस समय परिक्रमा आयोजित करने के आग्रह के पीछे अदालत को कोई पर्याप्त कारण नहीं दिखे।
अदालत के इस फैसले के बावजूद विश्व हिंदू परिषद ने परिक्रमा की घोषणा कर दी। इतना ही नहीं, उस खुश-खबर के बाद भी परिक्रमा का कार्यक्रम वापस नहीं लिया गया कि मुलायम सिंह खुद मुस्लिम संस्थाओं से राम मंदिर के बारे में बात करेंगे। यह अपने आप में बड़ी घटना थी कि विहिप का प्रतिनिधि मंडल मुलायम सिंह से मिला और मुलायम सिंह ने राम मंदिर की गुत्थी बातचीत से सुलझाने का आश्वासन दिया। यदि यह प्रक्रिया चलती रहती तो राम मंदिर के आंदोलन को ज्यादा फायदा होता या अब जबकि परिक्रमा को लेकर मुठभेड़ हो गई है, तब ज्यादा फायदा हो रहा है?
लगता है, यह मामला धार्मिक उतना नहीं रह गया है, जितना कि राजनीतिक हो गया है। यदि इस मामले को सुलझाने की नीयत होती तो दोनों पक्ष संयम का परिचय देते लेकिन दोनों ने जो तेवर अपनाए, वे उनकी राजनीतिक मजबूरियों को उजागर करते हैं। भाजपा और विहिप मिलकर अगर अपने हिंदू वोटों को पक्का करना चाहते हैं तो सपा अपने मुस्लिम वोटों को! वरना क्या वजह है कि दोनों पक्षों ने मुठभेड़ का नाटक रचाया? सपा के कुछ मुस्लिम नेताओं का विहिप और मुलायम की भेंट पर ही आपत्ति उठाना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। यदि विहिप ने परिक्रमा की ठान ली थी तो उसे करने देते। दो तीन सौ साधु परिक्रमा कर भी लेते तो क्या हो जाता? उस पर किसी का ध्यान भी नहीं जाता लेकिन साधुओं और नेताओं की गिरफ्तारी पर देश का ध्यान जा रहा है।
जहां तक अखिलेश-सरकार का सवाल है, उसका मुस्लिम वोट अब और पक्का हुआ है। दुर्गा शक्ति नागपाल के मामले से मुसलमान खुश हैं और इस परिक्रमा–भंग से वे गदगद हैं। एक दृष्टि से देखा जाए तो इस परिक्रमा-प्रसंग से दोनों ही पक्षों को राजनीतिक लाभ मिल रहा है। इसलिए कांग्रेस कह रही है कि यह मुठभेड़ तो सपा और कांग्रेस की मिलीभगत है। यह मिलीभगत है या नहीं, यह तो एकदम स्पष्ट नहीं है लेकिन इस ‘मिलीभगत’ से सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हुआ है। उसके पल्ले में न मुस्लिम वोट बढ़े हैं और न ही हिंदू वोट। वह न इधर की रही और न उधर की। अगर यह मुद्दा वोटों की राजनीति का मोहरा बनकर न रह जाए और यह सचमुच एक बड़ी मिलीभगत बन जाए (सिर्फ सपा, भाजपा और कांग्रेस को ही नहीं, बल्कि हिंदुओं और मुसलमानों की भी) तो पूरे एक नए भारत के निर्माण की नींव रखी जाएगी।
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