नया इंडिया 18 अक्टूबर 2013 : आजकल मलेशिया में ‘अल्लाह’ शब्द को लेकर काफी झंझट चल रहा है। मलेशिया के सर्वोच्च न्यायालय ने घोषित कर दिया है कि कोई भी गैर-मुसलमान अल्लाह शब्द का इस्तेमाल नहीं कर सकता। अगर वह करेगा तो दंडित होगा। अल्लाह शब्द का इस्तेमाल सिर्फ वे ही कर सकते हैं, जो मुसलमान हैं और कुरान शरीफ में विश्वास करते हैं। यह भी जरुरी है कि वे मुहम्मद साहब को पैगंबर मानते हों। मलेशिया में चीनी और भारतीय मूल के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। भारतीय मूल के गैर-मुसलमान तो अल्लाह शब्द का उपयोग नहीं करते और अपने धार्मिक क्रिया-कलापों में तो बिल्कुल नहीं करते लेकिन चीनी मूल के बहुत से लोगों ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है। उनके गिरजाघरों में प्रार्थना कभी-कभी अंग्रेजी में भी होती है लेकिन ज्यादातर मलय भाषा में होती है। बाइबिल का लोकप्रिय संस्करण भी मलय भाषा में है। मलय पर हिंदी, संस्कृत, अरबी, फारसी और चीनी आदि भाषाओं का प्रचुर प्रभाव है।
गिरजों में प्रार्थना के दौरान गॉड की जगह मलेशियाई ईसाई ‘अल्लाह’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं। यह परंपरा काफी पुरानी है। अब अदालत के फैसले पर मलेशिया के ईसाई नेता काफी नाराज़ हैं। सर्वोच्च अदालत ने हाइकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए यह फैसला दिया है। हाइकोर्ट के खिलाफ मलेशिया की सरकार ने अपील की थी। वास्तविकता तो यह है कि मलेशिया सरकार ने ही केथोलिक ईसाई अखबार ‘हेरल्ड’ द्वारा प्रयुक्त ‘अल्लाह’ शब्द पर पाबंदी लगाई थी। मलेशिया की सरकार इस समय इस्लामिक कार्ड खेल रही है। चुनाव नजदीक हैं। सत्तारुढ़ दल को बहुसंख्यको के वोट चाहिए। उन्हें अल्पसंख्यकों की ज्यादा परवाह नहीं है। लेकिन सरकार में शामिल एक चीनी महिला मंत्री और कुछ ईसाई सांसदों ने भी इस फैसले को गलत बताया है। अदालत ने भी काफी चालाकी से काम लिया है। उसने पश्चिमी ईसाई धर्मध्वजियों को अपने समर्थन में ला खड़ा किया है। उसने बड़े-बड़े पादरियों की राय देकर सिद्ध किया है कि उन्होंने अल्लाह आदि अरबी शब्दों के इस्तेमाल का विरोध किया है।
इसके अलावा मलेशिया के कट्टरपंथी मौलानाओं की यह शिकायत भी है कि पादरी लोग अरबी-फारसी शब्दों का इस्तेमाल करके भोले-भाले मुसलमानों को अपने जाल में फंसा लेते हैं। ऐसी शिकायत हमारे झारखंड के आदिवासियों ने भी की थी। उनका कहना था कि माता मरियम को किसी आदिवासी देवी की वेशभूषा इसीलिए पहना दी गई है कि भोले लोगों को ठगा जा सके। यदि मलेशियाई अदालत का मुख्य तर्क यह है तो वह काफी हद तक ठीक है लेकिन खुदा, अल्लाह, ईश्वर, गॉड आदि परमेश्वरवाची शब्दों पर किसी मज़हब या संप्रदाय की बपौती नहीं हो सकती। यदि बपौती मान ली जाए तो यह भी मानना होगा कि ईश्वर एक नहीं, अनेक हैं, जो कि इस्लाम की नज़र में कुफ्र है।
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