नया इंडिया, 13 नवंबर 2013 : आम आदमी पार्टी को दिल्ली में कितनी सीटें मिलेंगी, कुछ पता नहीं लेकिन उसके चुनाव अभियान ने कांग्रेस और भाजपा, दोनों के छक्के छुड़ा दिए हैं। दोनों पार्टियों को डर है कि कहीं ‘आप’ इतनी सीटें न जीत ले जाए कि दिल्ली विधानसभा अधर में लटक जाए। किसी एक पार्टी को बहुमत ही न मिले तो क्या होगा? इस डर ने दोनों बड़ी पार्टियों को नया पैंतरा मारने के लिए मजबूर कर दिया है। अब दोनों पार्टियां ही मांग कर रही हैं कि ‘आप’ को मिली 19 करोड़ रु. की राशि की जांच की जाए। हमारे भोले गृहमंत्री सुशील शिंदे ने जांच का समर्थन किया है। भाजपा के नेता यह भी कह रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल के लिए कांग्रेस ने अपना खजाना खोल दिया है। कांग्रेस ही उसकी पार्टी को अलग-अलग स्त्रोतों से ढके-छुपे मदद कर रही है। क्यों कर रही है? क्योंकि अरविंद की पार्टी जो भी वोट ले जाएगी, वे सब कांग्रेस-विरोधी वोट होंगे। याने दूसरे शब्दों में जो वोट भाजपा को मिलते, वे ‘आप’ को मिलेंगे।
भाजपा को हराने के लिए इससे बढ़िया अस्त्र क्या मिलेगा? भाजपा के एक नेता ने यह आरोप भी लगाया है कि चोर अब रंगे हाथ पकड़ा गया है। ‘आप’ की आय में से उन्हें काले धन की बदबू आ रही है। वे कह रहे हैं कि चोर अब शोर मचा रहा है कि सभी चोर हैं, सभी को पकड़ो। कांग्रेस और भाजपा को पैसे कहां से मिल रहे हैं, यह भी बताओ! ‘आप’ के विरुद्ध यह मोर्चाबंदी दोनों पार्टियों की गहरी हताशा को प्रकट करती है। दोनों पार्टियां पिछले साल तक लगभग तीन हजार करोड़ रु. इकट्ठा कर चुकी हैं। कांग्रेस ने दो हजार करोड़ और भाजपा ने एक हजार करोड़ रु. तो आयकर विभाग को बताए हैं। जो नहीं बताए हैं, वे इस राशि से कम से कम चार गुने तो होंगे। हजारों करोड़ की इस राशि के आगे सिर्फ 19 करोड़ रु. की राशि तो ऊंट के मुंह में जीरे की तरह है। 19 करोड़ रु., जो ‘आप’ को मिले हैं, उसमें विदेशों से भी आई हुई राशि हैं।
यह राशि प्रवासी भारतीयों ने भेजी है। भेजने वालों के नाम और राशि पार्टी की वेबसाइट पर उपलब्ध है। ये राशियां सीआईए या केजीबी या आईएसआई ने नहीं भेजी है। कुल 63 हजार लोगों ने 10 रु. से लेकर लाखों रु. तक भेजे हैं। सारा हिसाब वेबसाइट पर देखा जा सकता है। इससे बड़ी पारदर्शिता क्या होगी? क्या हमारे देश की प्रमुख पार्टियां अपना हिसाब अपनी वेबसाइट पर पेश करने को तैयार हैं? उनकी 80 प्रतिशत आय का कुछ पता नहीं है कि वह कहां से आई है? वह रिश्वत से, ब्लेकमेल से, दादागीरी से, घपलेबाजी से – काहे से आई है, वे बताती क्यों नहीं? अपने तो अरबों रु. इन पुरानी पार्टियों ने छिपा रखे हैं और इस नई पार्टी के कुछ करोड़ पर ये वक्र-दृष्टि डाल रही हैं। इसका नतीजा क्या हो रहा है? ‘आप’ पार्टी का महत्व जनता की नजर में बढ़ता चला जा रहा है। उसे एक नया और बढि़या मुद्दा मिल गया है। ‘आप’ पार्टी को दिल्ली विधानसभा में चाहे पांच सीटें न मिलें लेकिन उसकी स्वच्छ छवि का असर पूरे भारत की राजनीति पर पड़ेगा। संसद के चुनाव में वह चाहेगी तो कम से कम 50 सीटों पर दनदनाने लगेगी।
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